लोकतंत्र का अगर सही मायने में उत्पति कहा जाए तो वो सम्राट अशोक के समय हुआ था जिसमे उन्होंने अपनी प्रजा की हर जरूरतों को देखते हुए हर सेक्टर में जन-उपयोगी कार्य किये जिसे धर्म, शिक्षा एवं सामाजिक व्यवस्था, व्यापार एवं अर्थव्यस्था,चिकित्सा व्य
वस्था, एवं पशु संक्षरण,शासन व्यवस्था, कृषि व्यवस्था, वास्तुकला एवं सिविल इंजिनीयरिंग इत्यादी भागो में बाटा गया था। धौली के शिलालेख में सम्राट अशोक महान ने कहा है कि ”सबे मुनिसे पजा ममा” अर्थात् सभी मानव मेरी सन्तान हैं। उनकी इच्छा सदैव अपनी प्रजा से व्यक्तिगत सम्पर्क बनाये रखने की रहती थी। उन्होंने अपने प्रतिवेदकों को यह स्पष्ट आदेश दिया था कि प्रत्येक समय, स्थान पर चाहे मैं भोजन करता रहूँ, अन्तः पुर, शयनकक्ष, पशुशाला में रहूँ, पालकी पर रहूँ, उद्यान में रहूँ, सर्वत्र जनता के कार्य की सूचना दें। मैं सर्वत्र जनता का कार्य करता हूं। सभी पंथों एवं सम्प्रदायों का सम्मान करने का आदेश राजाज्ञा के माध्यम से जनता को दिया गया। जिसे आज की भाषा में पंथनिरपेक्षता कहते हैं। इसी कारण सामाजिक समरसता एवं साम्प्रदायिक समन्वय स्थापित हुआ, जिससे नैतिक विकास की गति तेज हुई और भ्रष्टाचार एवं भयमुक्त समाज बन सका।
घर के वरिष्ठ, अनुभवी एवं बुजुर्ग व्यक्ति के हाथों में परिवार की कमान होती थी। जनकल्याण के लिए हजारों सरायों, संघारामों, सड़कों के किनारें वृक्षों, मनुष्यों एवं पशुओं के लिए चिकित्सा केन्द्रों तथा कुँओं आदि की व्यवस्था की गई। विश्व विख्यात शिक्षण संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों का निर्माण हुआ। जैसे नालंदा, तक्षशिला जहां उस समय दस हजार से अधिक छात्रों के शिक्षा, भोजन एवं निवास की व्यवस्था थी। विदेशी शिक्षार्थीयों का बड़ी संख्या में शिक्षा के लिए आगमन हुआ तथा भारत विश्व गुरु कहलाया।
चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने देख-रेख में अर्थशास्त्र की रचना कराई तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक नीति बनाई। व्यापार, मुख्य रुप से कृषि तथा उद्योग आदि पर आधारित थे। उद्योगों में कपड़ों की कताई एवं बुनाई प्रमुख थी। कपड़े एवं मसालों का निर्यात चीन, मेसोपोटामिया, इजिप्ट, रोम आदि देशों में होता था। उस काल में चाँदी, पीतल आदि के पंचमार्क सिक्कों का प्रचलन हुआ। व्यापार एवं यातायात को सुदृढ़ एवं सुव्यवस्थित बनाने के लिए नई सड़कों जैसे महाराजा पथ (जीटीरोड) का निर्माण हुआ एवं उन्हें अंतर्प्रान्तीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से जोड़ा गया।
मुद्रा एवं माप के लिए एक समान पद्धति विकसित की गई। प्रान्तों में गवर्नर एवं क्लेक्टर नियुक्त किए गये, जो कानून व्यवस्था, टैक्स मूल्यांकन एवं संग्रह देखते थे। मौर्य साम्राज्य में सर्वप्रथम संघीय शासन व्यवस्था की स्थापना हुई। साम्राज्य कई प्रांतों में विभाजित था तथा सभी में चुने हुए प्रान्ताधीश या राज्यपाल होते थे। मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक में पाटलीपुत्र के संघीय एवं प्रशासनिक व्यवस्था के बारें में लिखा है कि सम्पूर्ण साम्राज्य विभिन्न राज्यों में विभाजित था। सभी राज्यों में मुख्य पदाधिकारी होते थे।
जो सम्राट के द्वारा पारित जन कल्याण योजनाओं को लागू करते थे तथा सम्राट को सूचित करते थे। उसके नीचे विभिन्न विभाग एवं पदाधिकारी होते थे। मेगस्थनीज ने लिखा है कि ”पाटलीपुत्र शहर में 30 अधिकारियों की 6 कमेटियाँ थी। प्रत्येक कमेटी में 5-5 पदाधिकारी थे। जो वहां की व्यवस्था को देखते थे। इन्हीं कमेटियों में उद्योग, कला, व्यापार, वित्त, जन कल्याणकारी योजनाओं आदि के लिए नीतियाँ तैयार की जाती थी। ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत होती थी जो वहां जन कल्याकारी योजनाओं को लागू करने के लिए उत्तरदायी होती थी। मौर्य काल में ही अखण्ड भारत का निर्माण हुआ, जिसे जम्बूदीप के नाम से जाना जाता है।
चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा है कि मौर्य काल भारत का स्वर्णिम युग था जिसके शासक सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने देख-रेख में अर्थशास्त्र का निर्माण कराया तथा सुदृढ़ वित्त, व्यापार, कृषि, उद्योग, न्याय एवं प्रशासनिक व्यवस्था का प्रबंध किए। रोमिला थापर ने अपने किताब, अशोका एण्ड द डिक्लाइन ऑफ मैार्याज में लिखा है कि मौर्य काल में संस्कृति एवं विकास उच्चतम शिखर पर था। इतिहास में पहली बार मौर्य सम्राटों ने केन्द्रीय कृषि नीति बनाई, जिससे भारत कृषि के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी रहा तथा विभिन्न कृषि उत्पादों का उस काल में निर्यात होता था। कृषि के उत्थान के लिए बाँध, नहरें, तालाब, कुएँ तथा उन्नत किस्म के बीजों को तैयार किया गया था। कृषि क्रान्ति से दूसरे उद्योगों को मदद मिली। कृषि को मौर्य शासकों ने एक उद्योग के रुप में विकसित किया था।
उन्होंने मानव एवं पशुओं के लिए चिकित्सा की व्यवस्था की, उन्होनें पशु हत्या पर रोक लगाई और निवेदन किया कि शाकाहारी बनें। बहुत से पक्षी एवं पशुओं को जैसे शेर, हिरन, कबूतर, बतख आदि को संरक्षण प्रदान किया। उनके काल में सुश्रुत और चरक जैसे चिकित्सा वैज्ञानिक हुए।सिन्धु घाटी की सभ्यता के नष्ट होने के बाद, पहली बार मौर्य काल में पत्थरों एवं पकी हुई इटों से इमारतों एवं किलों के निर्माण की तकनिकी विकसित हुई, जिसका उत्कृष्ट नमूना सारनाथ की खुदाई से प्राप्त राष्ट्रीय प्रतीक, अशोक स्तम्भ है। मौर्य काल के महान् सम्राटों ने जनकल्याण व शिक्षा संदेशों को आम जन तक पहुचाने के लिए स्तम्भ, स्तूप, गुफाओं तथा भवनों का निर्माण करवाये।
मौर्य काल में वास्तुकला एवं सिविल इंजिनीयरिंग के विकास का प्रत्यक्ष प्रमाण विश्वविद्यालयों जैसे नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला आदि के रुप में मिलता है। मौर्य काल में कृषि, निर्माण, सड़क संबंधित विज्ञान एवं तकनीकी का अद्भुत विकास हुआ। कर, व्यापार, माप-तौल एवं लेन-देन के लिए वैज्ञानिक पद्धति का विकास हुआ। सामाजिक शिक्षा एवं सूचना के लिए पहली बार लिपि का आविष्कार एवं लिपियों को लिखने, प्रचार एवं प्रसार के लिए वैज्ञानिक पद्धति का विकास हुआ एवं सूचनाओं को स्थानान्तरित करने हेतु डाक विभाग की स्थापना की गई। विभिन्न संस्थानों, स्तूपों, स्तम्भों, शिलालेखों के निर्माण में वैज्ञानिक तकनिकी का उपयोग किया गया।
लेखक-आशीष रंजन सिंह,
जद(यू) राष्ट्रीय कार्यालय सह सचिव