हरियाणा हिसार की ‘रामरती’ महिलाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत

भारत एक स्वतन्त्र देश है लेकिन फिर भी बहुत से गावँ छोटे कस्बों में रीति रिवाज के नाम पर कई बुरी कुरीतियों से जकड़ा हुआ है अगर बात की जाए हरियाणा की तो यहां के गावों में पर्दा प्रथा का चलन है, सुनने में आता है कि मध्यकाम में राजा सुंदर औरतों और लड़कियों को उठा लिया करते थे तब से पर्दा प्रथा की शुरुआत हुई थी बाद में इसे एक रिवाज बना दिया और उस पर मर्यादा और लज्जा का ठप्पा लगा दिया। गांव में औरतों को हर उस पुरुष से पर्दा करना पड़ता है जो रिश्ते में थोड़ा भी बड़ा हो या फिर पति की उम्र से बड़ा हो जैसे ससुर जेठ ननदोई जंवाई समधी आदि।
औरतों को घर का और खेतों का सारा काम करना पड़ता है वो भी घुघट किये हुए और वो बेचारी चूल्हे पर खाना बना रही होती तो एक तो धुएं से परेशान एक घूंघट से। उनके देखने की क्षमता बहुत कम हो जाती है आखों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ने के साथ-साथ हरदम रहने वाले सरदर्द का शिकार हो जाती है, वो किसी को कुछ बोल नही सकती और अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाप आवाज नही उठा सकती। अगर जरा भी कुछ बोलती है तो घर के आदमियों के द्वारा उनकी आवाज को दबा दिया जाता है और रीति रिवाजों और सस्कारों के नाम पर बांध दिया जाता है क्योंकि अपना समाज पुरुष प्रधान समाज है और यहां पर स्त्रियों को हर वो बात माननी पड़ती है जो परुष कहे बेसक वो सही हो या गलत।
सदियों से औरतों को नजरें झुकाकर रहना सिखाया जाता है और उनमें कायरता, भी रुता और निर्बलता जैसी कमजोरी पैदा कर दी जाती है। पर्दे में रहकर उसे कमजोर और अविश्वशनिय होने का एहसास करवाया जाता है। कोई पर्दा खोल ले तो उसे असंस्कारी और बेशर्म का नाम दे दिया जाता है, पर्दा का अर्थ चेहरे को ढक लेने मात्र से नही है इसका मतलब है स्त्री को पुरुष की मौजूदगी में भयभीत और लज्जित का अनुभव कराना।
अपने आप को आधुनिक कहने वाले युवक भी विवाह के बाद पर्दे की अपेक्षा करते है और पढी लिखी लड़कियां भी विवाह के बाद घर वालो और ससुराल वालों के दबाव में आकर पर्दे में चली जाती है, कोई साहस ही नही जुटा पाती आपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाप आवाज उठाने को इसी बीच गांव शिकारपुर हिसार की रहने वाली रामरती ने समाज क्या कहेंगे घर परिवार वाले क्या कहेंगे या क्या सोचेंगे कि परवाह किये बिना एक साहस भरा कदम उठाया और पर्दा खोल दिया। ये सब करना इतना आसान नही था उनको कई कठिनायों का सामना करना पड़ा समाज मे उनका विरोध करने वाले ज्यादा और समथर्न करने वाले कम। फिर भी वो अपने फैसले पर अडिग है। वो पूरे गांव की महिलाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। उनकी तरह ही गांव की ही बहुत सारी महिलाएं पर्दा खोलने के पक्ष में है पर परिवार में होने वाले कलह और समाज मे उनका मजाक उड़ाएंगे सोचकर पीछे हट जाती है।
महिलाओं को डरकर पीछे नहीं हटना चाहिए बल्कि एकजुट होकर अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। उनको आत्मनिर्भर होना चाहिए समाज के दबाव में आकर खुद का नुकसान नहीं होने देना चाहिए।

-सीमा वर्मा

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