साइबर हमलों पर सरकारी ऊहापोह से बढ़ती आशंकाएं

साइबर हमला डिजिटल युग की सबसे बड़ी समस्या है। इसलिए कार्य साधन का सबसे सस्ता, सुलभ और तेज माध्यम होते हुए भी इसे कभी विश्वसनीय नहीं माना गया। यही वजह है कि समझदार लोग इससे अपेक्षित दूरी भी बनाए रखते हैं। क्योंकि जिस तरीके से विभिन्न सरकारें इसका रणनीतिक तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं, उससे आने वाले दिनों में ऐसी समस्याएं बढ़ेंगी ही, कभी कम नहीं होंगी।
वास्तव में, साइबर हमला किसी के लिए प्रत्यक्ष हथकंडा है तो किसी के लिए परोक्ष, जिससे निबटने के लिए तमाम तरह के उपाय तो किए जा रहे हैंय लेकिन यह समस्या दिन-ब-दिन सुरसा की मुख की भांति बढ़ती ही जा रही है। इसलिए इस मामले में यदि अपेक्षित सावधानी नहीं बरती गई तो फिर हैकर आपकी तमाम गोपनीय जानकारियों का मनमाफिक उपयोग करके आपको भारी क्षति पहुंचा सकते हैं।
खास बात यह कि चाहे कोई व्यक्ति हो या प्रतिष्ठित संस्था, कोई भी इनके दुष्चक्रों से अछूता नहीं बचा है। हां, किसी को इनसे कम क्षति पहुंची है तो किन्हीं को ज्यादा, लेकिन इनकी दांवपेंच में फंसा कोई भी व्यक्ति या संस्था बख्शा कभी नहीं जाता। इसलिए अपेक्षित सावधानी बरतना ही इसका सबसे बड़ा निदान है, लेकिन जब हमारी सरकार ही इस मामले में चूक रही है तो फिर आम आदमी का क्या कहना।
कहना न होगा कि गत दिनों एक साथ रक्षा, गृह समेत केंद्रीय महकमों की दस वेबसाइटों का बैठ जाना महज इत्तेफाक नहीं बल्कि जानबूझकर किया गया साइबर आक्रमण था, जिससे समय रहते ही निबट लिया गया। इसलिए अब भले ही सरकार इस मामले में चीन से साइबर हमले की आशंका को खारिज कर रही हो, लेकिन यह सुलगता हुआ सवाल तो है ही कि जो वेबसाइट हैक हुई है, उन पर चीनी अक्षर नजर क्यों और कैसे आ रहे थे। क्योंकि इसी के आने से यह संशय और गहरा हो गया कि हैकर चीनी हो सकते हैं।
यह कौन नहीं जानता कि इस हमले में केंद्र सरकार के लगभग आधा दर्जन महत्वपूर्ण मंत्रालयों को निशाना बनाया गया, जो राष्ट्रीय चिंता का सबब है। इसलिए एक और अहम सवाल यह है कि सरकार जब साइबर सुरक्षा मजबूत करने के लिए तमाम तरह के उपाय कर रही हो, तब इस तरह की घटना डिजिटल इंडिया अभियान पर लोगों के विश्वास को क्यों नहीं डिगाएगी?
यह ठीक है कि आज लोग डिजिटल पेमेंट समेत तमाम तरह की निजी या गोपनीय जानकारी इंटरनेट पर ही संजोकर रखते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर शीघ्रतापूर्वक उसका उपयोग कर सकें। लेकिन ऐसी घटनाएं उन्हें डराती हैं, सशंकित करती हैं। आंकड़े भी गवाह हैं कि विगत एक वर्ष में साइबर हमले के 22,207 मामले सामने आए हैं, जिनमें 114 मामले सरकारी साइटों से सम्बंधित हैं। कहने का आशय यह कि इतनी साइटों पर साइबर हमले हुए हैं। ये आंकड़े भी संसदीय सवाल-जवाब पर आधारित हैं, जिसमें वह आंकड़ा शामिल नहीं है जिसकी किन्हीं निहित कारणों वश शिकायत ही किसी से नहीं की जाती है।
इस बात में कोई शक नहीं कि सर्वर, मेमोरी समेत अन्य कारणों से भी वेबसाइट कुछ समय के लिए बाधित हो सकती है, लेकिन हैक होने या फिर तकनीकी परेशानी आने की जानकारी तभी पता चल पाती है जबकि कोई तकनीकी विशेषज्ञ उससे जुड़ा हुआ हो। क्योंकि ऐसी घटना के बारे में सरकार के तकनीकी अधिकारी ही वास्तविक स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं। लेकिन इस मामले में जिस तरह की सक्रियता दिखाते हुए रक्षा मंत्री श्री मती निर्मला सीतारमण ने वेबसाइट को हैक बताया, चीनी साइबर हमले की आशंका जताई और फिर सरकार ही मुकर भी गई, इससे लोगों का आशंकित होना स्वाभाविक भी है।
दरअसल, सीतारमण की अटकलों के कुछ समय बाद ही सरकारी विशेषज्ञों ने जिस तरह से साइटों के बाधित होने का कारण तकनीकी बताया, उससे इसके विभिन्न पहलुओं पर संशय और गहरा गया है। साइबर विशेषज्ञ भी मानते हैं कि केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की वेबसाइटों का गत दिनों अचानक बाधित हो जाना कोई सामान्य घटना नहीं है। क्योंकि सरकारी सूचना तंत्र के संचालन के लिए 500-600 गीगाबाइट इंटरनेट ट्रैफिक हर समय चलता है जिसकी सतत निगरानी कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस केंद्र करते हैं। यह भी सच है कि इस नेटवर्क पर बाहरी देशों से रोज सैकड़ों हमले होते हैं जिनमें ज्यादातर को नाकाम कर दिया जाता है। इसलिए यदि किसी स्तर पर चूक हुई है तो सरकार को भी इसे हल्के में नहीं लेनी चाहिए।
कहने को तो सरकार भी इस लिहाज से मुस्तैद है क्योंकि उसके एक साइबर विशेषज्ञ ने शीघ्र ही स्पष्ट कर दिया है कि स्टोरेज नेटवर्क प्रणाली के हार्डवेयर में खराबी के चलते वेबसाइट ठप्प हुई हैं जिन्हें देर रात तक दुरुस्त कर लिया गया। इससे स्पष्ट है कि यह परेशानी मेमोरी चिप में गलिच की वजह से आई थी, जबकि श्री मती सीतारमण ने इसे हैक करार दिया था।
जानकार बताते हैं कि साइबर हमले तीन स्तरों पर निष्क्रिय किए जाते हैं। पहले एनआईसी गेटवे में सभी तरह के इंटरनेट ट्रैफिक से मालवेयर और वायरस हटाये जाते हैं। इसके बाद डाटा सेंटर में फिर से स्कैनिंग की जाती है। जबकि यूजर एंड यानी कि कंप्यूटर पर यदि कोई हमला होता है तो उसके लिए भी एंटी वायरस आदि के इंतजाम होते हैं।
बहरहाल, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मंत्रालयों की वेबसाइटों पर साइबर हमला या हैकिंग नहीं हुई है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो उपर्युक्त दिक्कतें कभी पैदा ही नहीं होतीं। इसलिए अब सरकार को चाहिए कि डिजिटल तंत्र को इतना दुरुस्त बना दिया जाए कि इस तरह की गड़बड़ियों को समय रहते ही रोक लिया जाए। यही नहीं, सरकारी अधिकारियों और आम आदमी, दोनों तरह के उपयोगकर्ताओं को यह समझना पड़ेगा कि जिन जानकारियों को कभी भी दूसरों से साझा नहीं किया जा सकता, उनकी पहुंच इंटरनेट से दूर ही रखी जाए तो बेहतर होगा, अन्यथा वह कभी भी किसी के भी संज्ञान में आ सकती हैं। इसलिए उनसे होने वाली किसी भी संभावित क्षति के लिए भी सम्बंधित लोगों को मानसिक रूप से तैयार रहना होगा।
-कमलेश पांडे, वरिष्ठ पत्रकार

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