हरेश कुमार,
एकाध अपवादों को छोड़ दें तो देश के तमाम सांसद, विधायक, पार्षद, ग्राम प्रधान अपने क्षेत्र विकास की निधि में से 40 प्रतिशत पहले ही रखवा लेते हैं। इस कारण से घटिया निर्माण होता है। सड़कें, स्कूल, अस्पताल की बिल्डिंग उद्घाटन होने से पहले ही गिरना शुरू हो जाता है। दरार दिखने लगता है।
नेताओं, अधिकारियों, ठेकेदारों और दलालों का यह गठजोड़ बहुत ही ताकतवर हो चुका है। इसके साथ जातिवादी गठबंधन भी है। यही कारण है कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ताओं की आए दिन हत्या आम बात हो चुकी है।
लोग भी भ्रष्टाचार को मान्यता दे चुके हैं। ऐसी स्थिति में कोई कुछ नहीं कर सकता। सरकार द्वारा जारी 100रुपये की सहायता प्राप्त करने के लिए भी लोग 20रुपये खुशी से कमीशन देने को तैयार होते हैं। हाल में कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया। इस कारण जो जहां थे वहीं रह गए। गरीब तबका ज्यादा प्रभावित हुआ। ऐसे लोग मिले जिन्होंने बिहार सरकार द्वारा दी जा रही 1000रुपये की सहायता को पाने के लिए 200रुपये खुशी-खुशी देने को तैयार थे। इन सबका कहना था कि बगैर कमीशन के एक रुपये भी नहीं मिलने वाला। कुछ को तक मैंने डांट भी दिया। उसे प्रक्रिया बताई, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा मिली, जिनके पास गांव में बेंक खाता ही नहीं था।
सरकार में बैठे लोगों को इसकी परवाह ही नहीं, क्योंकि वातानुकूलित कमरे में बैठकर निर्णय करने वालों की ऐसी स्थिति के बारे में कभी जानकारी ही नहीं होती। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि मृत्यु सर्टिफिकेट बनवाने जाओ तो पहले चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है। यह देश की हकीकत है। बेसहारा लोगों के अंतिम संस्कार के लिए सरकार द्वारा दी गई सहायता भी ऐसे बेशर्म लोग आपस में बांट लेते हैं। अधजली लाशों को नदियों में बहा देते हैं। यही कारण है कि नदियों का पानी कभी साफ नहीं होता, क्योंकि फैक्ट्री की गंदगी, शहरों की नालियों का पानी मलमूत्र सब नदियों में बे रोकटोक प्रवाहित होता रहता है। लॉकडाउन के दौरान इन सब चीजों पर रोक लग गई है तो पर्यावरण से लेकर नदियों का पानी भी स्वच्छ हो चुका है। यही काम सरकार द्वारा अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी नहीं हुआ, क्योंकि ऊपर से नीचे सबका कमीशन बंटा हुआ है।
ऐसे ही लोगों के लिए कवि जानकी वल्लभ शास्त्री ने लिखा था-
ऊपर-ऊपर पी जाते हैं, जो पीने वाले हैं।
कहते ऐसे ही जीते हैं, जो जीने वाले हैं।
सच पूछिए तो भ्रष्टाचारी नेताओं ने जाति को अपनी आड़ ले लिया है। इसमें पिछड़े और दलित नेताओं की संख्या 99प्रतिशत है। एकाध अपवादों को छोड़ दें तो सब एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचार शिरोमणि हैं। भ्रष्टाचार के पैसों से ये ऐश करते हैं और जनता अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के लिए बाध्य है।
एक समय लालू प्रसाद यादव घमंड से कहा करते थे, जब तक रहेगा समोसे में आलू,तब तक रहेगा बिहार मेः लालू। समोसे में आलू आज भी है, लेकिन लालू प्रसाद यादव जेल की कालकोठरी में डायबिटीज से लेकर तमाम बीमारियों से अकेले जूझ रहे हैं। सबको यहीं भोगना पड़ता है। यही हकीकत है।