बिहार के आरा मुख्यालय के शाहपुर प्रखंड के क्षेत्र अंतर्गत एनएच 84 के पास गोसाईपुर के समीप एक ऐसा दिब्य अदभूत एवं अलौकिक मंदिर जिसकी उत्पत्ति की ’कहानी एवं चमत्कारों से भरी पड़ी है जी हां हम बात कर रहे हैं एक ऐसा दिव्य शिव मंदिर जो दैवीय चमत्कार एवं रहस्यमय इतिहास से अपनी उत्पत्ति को दर्शाता है! जब हमारा ‘युवा सियासत पत्रिका’ कि टिम के द्वारा मंदिर स्थल पर खबर कि हकिकत का पड़ताल करने का प्रयास किया गया तो मंदिर कि पिढी दर पिढी पुजा करते आ रहे मंदिर के प्रधान पुजारी बिनोद बाबा के द्वारा मंदिर से जुड़ी लगातार कई रहस्यमय एवं चमत्कारिक दावे किए गए! जब हमारी टिम ने पूर्व बीजेपी विधायिका से संपर्क किया तो पूर्व विधायक मुन्नी देवी के द्वारा बताया गया कि इस शिव मंदिर के विकास व इसे पर्यटन स्थल घोषित करने के लिए विहार विधानसभा मे उनके द्वारा लगातार दो बार सवाल उठाया गया लेकिन तत्कालिन सरकार के द्वारा कोई संतोष जनक कार्यवाई नहीं किया गया।
इस शिव मंदिर का रहस्य द्वापर यूग से जुड़ा हुआ हैं। भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अवतार माने जाते हैं। भगवान विष्णु और शिव एक दूसरे के भक्त भी हैं। पुराणों में जो कथाएं मिलती हैं उनके अनुसार शिव को नहीं मानने वाला व्यक्ति विष्णु का प्रिय नहीं हो सकता। इसी प्रकार विष्णु का शत्रु शिव की कृपा का भागी नहीं हो सकता है। लेकिन एक घटना ऐसी हुई जिससे भगवान शिव और विष्णु के अवतार श्री कृष्ण युद्ध में आमने सामने आ गये, और छिड़ गया महासंग्राम।
पुराणों में शिव और श्री कृष्ण के बीच हुए युद्ध की जो कथा मिलती है उसके अनुसार। राजा बलि के पुत्र वाणासुर ने भगवान शिव की तपस्या करके उनसे सहस्र भुजाओं का वरदान प्राप्त कर लिया। वाणासुर के बल से भयभीत होकर सभी उससे युद्ध करने से डरते थे। इससे वाणासुर को बल का अभिमान हो गया। वाणासुर की पुत्री उषा ने एक रात स्वप्न में श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को देखा। उषा स्वप्न में ही अनिरुद्ध को देखकर उस पर मोहित हो गयी। उषा ने अपने मन की बात सखी को बतायी। सखी ने अपनी मायावी विद्या से अनिरुद्ध को उसके पलंग सहित महल से चुरा कर उषा के शयन कक्ष में पहुंचा दिया। अनिरुद्ध की नींद खुली तो उसकी नजर उषा पर गयी, अनिरुद्ध भी उषा के सौन्दर्य पर मोहित हो गया। जब वाणासुर को पता चला कि उसकी पुत्री के शयन कक्ष में कोई पुरूष है तो सैनिकों को लेकर उषा के शयन कक्ष में पहुंचा। वहां पर वाणासुर ने अनिरुद्ध को देखा।
वाणासुर के क्रोध की सीमा न रही और उसने अनिरुद्ध को युद्ध के ललकारा। वाणासुर और अनिरुद्ध के बीच युद्ध होने लगावाणासुर के सभी अस्त्र विफल हो गये तब उसने नागपाश में अनिरुद्ध को बांध कर बंदी बना लिया। इस पूरी घटना की जानकारी जब श्री कृष्ण को मिली तो वह अपनी सेना के साथ वाणासुर की राजधानी में पहुंच गये। श्री कृष्ण और वाणासुर के बीच युद्ध होने लगा। युद्ध में अपनी हार होता हुआ देखकर वाणासुर को शिव की याद आयी जिसने वाणासुर को संकट के समय रक्षा करने का वरदान दिया था। वाणासुर ने शिव का ध्यान किया तो शिव जी युद्ध भूमि में प्रकट हो गये। वाणासुर की रक्षा के लिए शिव ने श्री कृष्ण से कहा कि युद्ध भूमि से लौट जाएं अन्यथा मेरे साथ युद्ध करें।
श्री कृष्ण ने शिव से युद्ध करना स्वीकार किया और छिड़ गया शिव एवं श्री कृष्ण के बीच महासंग्राम। श्री कृष्ण ने देखा कि शिव के रहते हुए वह वाणासुर को परास्त नहीं कर सकते तो उन्होंने शिव से कहा कि मेरे हाथों से वाणासुर का पराजित होना विधि का विधान है। आपके रहते मैं विधि के इस नियम का पालन नहीं कर पाऊंगा श्री कृष्ण कि इन बातों को सुनकर भगवान शिव युद्ध भूमि से चले गये। इसके बाद श्री कृष्ण ने वाणासुर चार बाजुओं को छोड़कर सभी को सुदर्शन चक्र से काट दिया। वाणासुर का अभिमान चूर हुआ और उसने श्री कृष्ण से क्षमा मांगकर अनिरुद्ध का विवाह उषा से करवा दिया। यह वही स्थान हैं जहाँ हजारो वर्षो पूर्व कभी माँ गंगा कि धारा इस स्थान को अपनी जल धाराओ से निर्मल करती थी एवं इसी पावन स्थल पर द्वार यूग मे महाबली बाड़ा सुर इसी पावन गंगा तट के किनारे इसी कुंडेश्वर नाथ शिव कि तपस्या कर अनेको सिद्धीयाँ एवं वरदान प्राप्त किया था।
इस शिव मंदिर को लेकर स्थानिय भक्तो के द्वारा बताया गया व निवेदन किया गया कि तत्कालिन राज्य सरकार जल्द इस मंदिर के बारे मे संग्यान लेकर इसे पर्यटन स्थल घोसित करें और इस शिव मंदिर का सर्वांगिण विकास करायें, जिससे यह मंदिर विश्व पटल पर अपनी गौरव मयी इतिहास के साथ अपनी पहचान स्थापित कर सके।
-नीरज कुमार त्रिपाठी, (आरा)