पुलवामा आतंकी हमलाः कश्मीर तो होगा, लेकिन पाकिस्तान नहीं होगा

अमेरिका तब पाकिस्तान का पोषक था जब भारत सोवियत संघ के नजदीक था। यह कांग्रेस की नीति थी और इस कारण भारत निर्गुट देशों के साथ होकर भी निर्गुट नहीं था। समय के साथ राजनयिक संबंध भी बदलते हैं। बांग्लादेश में खालिदा जिया भारत विरोध का झंडा उठाए रहती है तो उसका विरोध होता है,लेकिन शेख हसीना भारत के समर्थन में रहती है तो हम बांग्लादेश का विरोध नहीं करते।
आज के समय अफगानिस्तान में भारत सरकार ने सड़क से लेकर वहां की संसद का निर्माण किया है, परिस्थितियां बदलती रहती हैं. ईरान का चाबहार बंदरगाह भारत ने डेवलप किया है, ताकि पाकिस्तान की सड़क का इस्तेमाल न करना पड़े।
अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों के बारे में सबको पता है। एक मुस्लिम कंट्री होने के बावजूद ईरान ने अपनी भूमि और बंदरगाह भारत को डेवलप करने को दिया। यह अंतरराष्ट्रीय जरूरत है और सबकी अपनी राजनीति है। इजरायल के विमान को पहली बार सऊदी अरब ने अपने आकाश में उड़ने दिया, यह भी एक हकीकत है, क्योंकि वह सच्चाई स्वीकार कर चुका है। हमारा देश पाकिस्तान का विरोधी नहीं है। उसी कश्मीर के लोगों को जम्मू में हिंदू भोजन उपलब्ध करा रहे हैं, क्योंकि वहां वर्फबारी के कारण जीवन मुश्किल हो गया है। हमारे सैनिक बाढ़ में कश्मीरियों को जान पर खेल कर बचाते हैं,लेकिन ये फिर से पत्थरबाजी करने में लग जाते हैं। हर चीज का अपना एक महत्व होता है।
पाकिस्तान चीन के हाथों खेल रहा है। वहां की सत्ता पर बैठा सेना, आईएसआई और नेता भारत के साथ कभी मैत्री नहीं चाहते, क्योंकि मैत्री हो जाने के बाद इन सबकी वर्तमान स्थिति पर फर्क पड़ेगा, जो वो किसी भी हाल में नहीं चाहते।
एक बात बताइए आजादी के समय पाकिस्तान में 40 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू थी आज 1 से 1.5 प्रतिशत पर कैसे आ गई, जबकि भारत में ये दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी हो चुकी है। यहां जितनी सुविधाएं मिलती है उतनी सुविधाएं किसी मुस्लिम कंट्री में भी न मिलेगी,लेकिन इतना होने के बावजूद आतंकियों को खाद-पानी इसी समुदाय से मिलता है, इतनी घृणा कहां से आती है।

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जाकर पूछिए उस जोगेंद्र नाथ मंडल के परिवार से जो जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान तो चले गए थे, लेकिन कुछ समय बाद ही वापस आ गए। पाकिस्तान के संविधान का निर्माण उन्होंने ही किया। वह बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के गुरु रहे हैं।
बातें बहुत सारी हैं। ऐसा नहीं कि देशभक्तों की इस समुदाय में कमी नहीं,लेकिन जहां कहीं देश में आतंकी घटनाएं होती हैं, तो सबसे पहले उंगली इसी समुदाय पर उठती है। दुनियाभर में कहीं भी आतंकी हमला हो तो मुस्लिम आतंकियों पर ही निगाहें जाती है, ऐसा क्यों? कभी समय मिले तो सोचिएगा।
-हरेश कुमार

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