दल बदलने से देश नही बदलता।
देश बदलता है नेता बदलने से।
नेता बदलने से नीतियां बदलती है।
और नीतियों के बदलने से देश बदलता है।
देश में किसान आंदोलन चल रहा है। किसान अपने दम पर अपनी लड़ाई लड़ रहा है। किसी दल की कोई ज्यादा भूमिका नहीं है। विपक्ष के पास भी किसानों के लिए कुछ खास नजर नहीं आ रहा है। समूचा विपक्ष नेतृत्वहीन है और अपने कर्तव्य निभाने में अयोग्य साबित हो रहा है। सपा, बहुजन, डीएमके, भी मौन मुद्रा में ही समझीये। अब कुछ दिन में धीरे धीरे देश की हवा बदलती हुई नजर आने लगेगी। हवा के साथ और इस सुनहरे अवसर पर नेता भी अपना रंग और पाला बदलते हुए नजर आएंगे। उनके स्वर, शब्द और नारे भी आज की अपेक्षा बिलकुल उल्ट होंगे। अगर किसान आंदोलन सफल हुआ तो बीजेपी कांग्रेस में बदल जायेगी। जैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ चले आंदोलन के वक्त हुआ था। कांग्रेस बीजेपी में बदल गयी थी। जो लोग कांग्रेस से चुनकर संसद और विधानसभा में पहुँचे थे वहीं लोग पाला बदलकर भाजपा से चुनकर पहुँच गये। बदला क्या सिर्फ चुनाव निशान।
50 प्रतिशत के करीब विभिन्न पार्टियों के नेता आज भी सत्ता में हिस्सेदार है और पिछले कार्यकाल में भी सत्ता में थे। एक बार फिर ऐसा ही होने वाला है। किसान आंदोलन को एक अच्छे अवसर के रूप में नेताओं द्वारा भुनाया जायेगा। किसान आंदोलन पर अपनी खिड़की से पूरी नजर रखेंगे। खुद को किसान या किसान का बेटा और किसान हितैषी के रूप में प्रस्तुत करेंगे। किसानों को समर्थन करेंगे। तब तक उनके रणनीतिकार, सलाहकर, चाटुकार और चापलूस पूरा सर्व कर चुके होंगे। फिर अपने दल के खिलाफ और किसानों के समर्थन में आवाज बुलंद करेंगे। तहसील और जिला मुख्यालयों पर किसानों के लिए धरना प्रदर्शन किया जायेगा। पार्टी से मोह भंग होगा और किसानों के लिए 120 से 90 दिन पहले पद त्याग होगा जिसे उनके महिमा मंडन कारो द्वारा बहुत बड़ी शहीदी, त्याग, तिलांजलि के रूप में दिखाया जाएगा। तब तक हवा का रुख भी पता चल चुका होगा।
फिर एक बड़ी रैली या जलसे के माध्यम से उस दल में जनता के मसीहा की तरह इंट्री होगी। इस एंट्री को पेड मीडिया, रणनीतिकारों, राजनीती में फर्जी प्रोपगेंडा चलाने वाले इसे घर वापसी, ह्रदय परिवर्तन की बड़ी हेड लाइनों के साथ चलाएंगे और जनता का मन बदलते भी ज्यादा देर न लगेगी। क्योकि इनका तो व्यवसाय है और व्यव्यास चमक दमक से चलता है। उस समय ये फर्जी चमक दमक, नारे, वादे, ग्रामीण इलाकों के देशी और छोटे छोटे फिल्टर फाड़ भाषण मिडिया में छाए हुए होंगे और हम इसी चकाचैदं में भर्मित होकर बह जायेंगे। फिर रैलियों का दौर शुरू होगा, जितनी ज्यादा बड़ी रैली होगी उतनी ही जल्दी टिकट पक्की होगी। फिर वहीं आपके लिए नीतियां बनाने बैठ जायेगा। बदला क्या सिर्फ दल और निशान।
कितना अच्छा व्यवसाय है ना राजनीती कोई मार्केट रिस्क नहीं, कोई निजी इंवेस्मेंट नहीं। जिस दल का मार्केट में उछाल आया होगा। उसी में जनता का निवेश और फिर 5 साल नेता जी ऐश ही ऐश। जब तक हम नेता नहीं बदलेंगे तब तक कुछ भी अच्छा होना मुशिकल है। दल बदलने वाले नेताओं से सावधान। क्योंकि दल बदलने वाला नेता प्रयोग किये हुए डिस्पोजल की तरह होता है। मतलब ’इस्तेमाल करो और फेक दो।
-हितेश भारद्वाज, स्वतंत्र विचारक