खास तौर पर अगर चुनाव बाद त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति आती है तो तेजस्वी की चिराग के लिए यह सहानुभूति कुछ अलग ही गुल खिला सकती है।
-राजेश कुमार,
चुनाव चाहे राज्य का हो या फिर देश का, किसी भी राजनेता से आदर्शवाद की उम्मीद मूर्खता है! जैसे-जैसे चुनावी पहला दिन नजदीक आता जा रहा है, बिहार का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। कहां रूकेगा? कोई कह नहीं सकता है। हां, इतना तय है कि बीते 15 सालों से लगातार मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार को इस बार कई जोर के झटके एक साथ लगने वाले हैं। 2015-विधानसभा चुनाव के दौरान जेडीयू-आरजेडी मिलकर चुनावी मैदान में थीं, लोगों ने इन पर भरोसा किया, बहुमत भी दिया, कम सीटें होने के बावजूद राजनीति में माहिर आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने नीतीश को मुख्यमंत्री पद पर आसीन कर दिया। परन्तु फिर भी नीतीश कुछ दिनों के बाद भाजपा के साथ हो लिए, जिससे बिहार की जनता ने खुद को ठगा हुआ महसूस किया। यह गुस्सा भी इस बार के चुनावी नतीजों की धारा को मोड़ने का काम करेगा। एनडीए में शामिल दलितों की आवाज़ स्व.रामविलास पासवान की पार्टी (लोजपा) को इस बार नीतीश की शतरंजी चाल से बाहर कर दिया गया।
अब लोजपा के संचालक चिराग पासवान अकेले चुनावी समर में हैं। जिन्हें बीजेपी की तरफ से वोट-कटवा पार्टी तक कहा जा रहा है! नीतीश भी इस पर हमलावर हैं। बीजेपी के सुशील मोदी पहले ही कह चुके हैं कि लोजपा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फोटो का इस्तेमाल न करे! अगर फोटो लगाने भर से ही कोई चुनाव जीत जाता, तो जिस भाजपा के साथ खुद जीते जागते मोदी हैं, वह अपने दम पर बिहार में चुनाव क्यों नहीं लड़ती है? क्यों इसे नीतीश नाम का सहारा चाहिए? चिराग पासवान युवा नेता हैं, अच्छे व़क्ता भी हैं, लोग इन्हें पसंद करते हैं, इस बार रामविलास पासवान का न होना भी इन्हें लाभ देगा। यह भी इस बार के नतीजों की धारा को मोड़ने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। चुनावी तारीख़ आते-आते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी को भी प्रचार में उतारा गया, जोकि वोटों का ध्रुर्वीकरण करने में कुशल हैं।
रोहतास की एक रैली में मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए योगी कहते हैं, ‘अब पाकिस्तान समर्थित आतंकी कश्मीर में आकर जवानों पर हमला नहीं कर सकते। क्योंकि अब करेगा तो भारत का जवान पाकिस्तान के अंदर घुसकर मारेगा। अब नहीं कोई बोल सकता है, जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ अब तो मोदी जी के नेतृत्व में एक ही नारा लग रहा है पूरे हिंदुस्तान में, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक-एक भारत, श्रेष्ठ भारत।’ इनसे पहले केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय आतंक की तुलना आरजेडी की सरकार से कर चुके हैं, उन्होंने एक नामांकन भाषण के दौरान कहा, अगर आरजेडी की बिहार में सरकार बनी तो कश्मीर का आतंक बिहार की धरती पर पनाह लेना शुरू कर देगा…
चुनाव चाहे कोई भी हो। मुद्दा चाहे कोरोना काल से बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, देश भर से मजदूरों का बिहार की ओर नंगे पैर, भूखे पेट पलायन का हो, रास्ते में हुई दर्दनाक मौतों का हो, बिजली-पानी- सड़क… रोटी-कपड़ा और मकान का हो। लेकिन अलग-अलग पार्टियों के अपने कुछ ‘फिक्स’ मुद्दे भी होते हैं, जिनका वह चुनाव में अवश्य इस्तेमाल करते हैं। पिछले कुछ चुनावों का ट्रेंड है कि बीजेपी पाकिस्तान में की गई सर्जिकल स्ट्राइक, जेएनयू में ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के नारे का इस्तेमाल करती आई है और अब बिहार चुनाव में भी यह इस्तेमाल हो रहा है। हाल ही में प्रचार के दौरान 15 सालों से बिहार की सत्ता संभाल रहे नीतीश कुमार ने कहा, बिहार में संमदर नहीं इसलिए यहां रोजगार के अवसर कम हैं। क्या संमदर केवल बिहार में ही नहीं है? देश के अन्य सभी राज्यों में है? रोजगार से समंदर का क्या लेना-देना? सोच और नीयत सही दिशा में हो तो लोकहित के अवसर पैदा किए जा सकते हैं। हां, अपनी नाकामी छुपाने के लिए यह बिहार के युवाओं को कुछ भी कह सकते हैं। लेकिन ‘बिहार’ देश का अकेला ऐसा राज्य है, जहां की जनता राजनीति को बखूबी समझती है, यह लच्छेदार भाषणों से बहकने वाली नहीं है। यह वो भी जानती है जो नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल के दौरान किया, जो करना चाहिए था और नहीं किया। अब तक के राजनीतिक गणित को देखा जाए तो तेजस्वी यादव ने एनडीए को विचलित तो कर दिया है, जोकि बिहार में सबसे आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है और बिहार राजनीति की बाते करें तो यह आरजेडी और बीजेपी के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है।
तेजस्वी यादव ने बिहार राजनीति की पिच पर जो ‘कवर ड्राइव’ लगाने की कोशिश की है, यह ‘शाॅट’ बाउंड्री लाइन के बाहर जाएगा या नहीं? यह तो आने वाला समय ही तय करेगा। परन्तु उन्होंने चुनाव में जिन मुद्दों को उठाया है, उनका जिक्र कुछ इस प्रकार है: जाॅब्स पर फोकस, बिहार में जातिवाद हमेशा से हावी रहा है, जो चुनावों में जीत-हार के समीकरणों को बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाता आ रहा है… एक समय था, जब सवर्ण वोट जीत-हार तय किया करते थे, लेकिन मौजूद दौर की बात की जाए तो बिहार में पिछड़े वर्ग के लोगों ने अपनी अहमियत दर्ज कराई है। तभी तो सभी राजनैतिक दल इन्हें रिझाने में लगे हुए हैं, लेकिन इस सबके बीच लगता है तेजस्वी यादव ने ‘जाॅब्स’ की बात करके युवा वर्ग को आकर्षित करने की कामयाब कोशिश तो की है। जिस तरह से तेजस्वी ने 10 लाख नौकरियों को अपने महत्त्वपूर्ण एजेंडे में शामिल किया है। बिल्कुल इसी तरह की सोच उनकी सहयोगी पार्टियों कांग्रेस और वामपंथी दलों की भी है।
गठबंधन की योजना गरीबों, बेरोजगारों और किसानों पर ध्यान केंद्रित करना है, न कि विशिष्ट जाति समूहों पर ध्यान केंद्रित करना है। एक रणनीतिकार ने कहा, जातिगत दलों का गठबंधन यह दर्शाता है, तेजस्वी सिर्फ यादव नेता हैं या इससे बढ़कर एक मुस्लिम-यादव नेता… यह वह कहानी नहीं है। बीजेपी में हलचल साफ दिखाई दे रही है, इस ओर से एक ऐसा बयान सामने आया है। जिस पर चर्चा और बवाल शुरू हो चुका है। दरअसल, बीजेपी ने बिहार चुनाव के लिए घोषणा-पत्र (संकल्प पत्र) जारी किया, जिसमें 10 लाख नौकरियों की काट को, 19 लाख कर दिया गया, साथ ही फ्री में हर बिहारी को कोरोना वैक्सीन देने का वादा किया गया है! जोकि हैरान करता है, क्योंकि वैक्सीन तो अभी तक है ही नहीं। सवाल लाज़मी है, क्या आने वाले समय में कोरोना वैक्सीन से भी वोट बैंक को साधा जाएगा?
भले ही बीजेपी नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ती दिख रही है। लेकिन यह आम तौर पर माना जा रहा है कि पार्टी अंदरखाने चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के साथ भी गलबहियां कर रही है और इस बार चिरागी दांव चलकर बीजेपी नीतीश कुमार को कमजोर करने के सफल प्रयोग में है। देखने वाली बात यह भी है कि सबसे लोकप्रिय पार्टी होने के बावजूद बीजेपी ने अपनी ओर से सीएम पद के लिए कोई चेहरा पेश नहीं किया है। वास्तव में पार्टी ने नीतीश कुमार के खिलाफ असंतोष के बावजूद जेडीयू को आधी सीटें दी हैं और इससे उन सीटों पर मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बनी हुई है, जिससे कहीं-न-कहीं बीजेपी पसोपेश की स्थिति में होगी… दूसरी ओर चुनाव मतदान और चुनाव परिणाम से पहले कई तरह की राजनीतिक संभावानएं भी जन्म लेती हैं। पहले लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान द्वारा यह कहना कि 10 नवंबर को बिहार में लोजपा-भाजपा की सरकार बनेगी, काफी चर्चा में रहा। बीजेपी नेताओं को लगातार ऐसे कयासों को लेकर सफाई देनी पड़ी, यहां तक कि स्थिति स्पष्ट करने के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता व गृह मंत्री अमित शाह तक को सामने आना पड़ा। अब बिहार के सियासी गलियारे में एक और ऐसा बयान आया है जिसने राजनीतिक खलबली मचा दी है।
दरअसल, जब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव इलेक्शन कैंपेन के लिए निकल रहे थे तो उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा, चिराग के साथ नीतीश कुमार ने जो किया वह अच्छा नहीं था। उनको इस समय अपने पिता की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है, लेकिन रामविलास पासवान हमारे बीच नहीं हैं और हम इससे दुखी हैं… जिस तरह से नीतीश कुमार ने व्यवहार किया, वह अन्याय था… क्या कुछ मूक रूप से कहलाता है? राजनीतिक विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि चिराग पासवान के प्रति पूरे लालू परिवार की सहानुभूति दिखाने के साथ ही बिहार में नई सियासी संभावानाएं भी दिखने लगी हैं, खास तौर पर अगर चुनाव बाद त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति आती है तो तेजस्वी की चिराग के लिए यह सहानुभूति कुछ अलग ही गुल खिला सकती है। वैसे भी सियासत संभावनाओं का खेल है, इसमें कोई भी स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होते। इस बार बिहार चुनाव में उम्मीदवार के रूप में उतरे बाहुबली भी चर्चा में हैं। बिहार में का-बा, की-बा, ई-बा, ऊ-बा इत्यादि-2 बहुत हुआ, परन्तु इस बार चुनाव-2020 का नतीजा अलग-बा। एनडीए बनाम महागठबंधन का मुकाबला दिलचस्प होता दिखाई दे रहा है। महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव की सभा में भीड़ की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। राजद नेताओं के लिए ये तस्वीरें बदलाव की बयार हैं, तो दूसरी ओर एनडीए के नेताओं के लिए यह बुलाई गई भीड़ मात्र है। अब सांच को आंच क्या, 10 तारीख़ तय कर देगी कि बिहार की जनता की इस बार राय क्या है।
बिहार के चुनावी संग्राम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी सभाओं की शुरुआत की। सासाराम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उन्होंने पहली सभा की। मोदी ने युवाओं की शिक्षा, रोजगार और सरकारी नौकरियों को लेकर भी सरकार की इच्छा शक्ति और जमीनी बदलावों पर बात की, कहा कि सरकारी भर्ती प्रक्रिया में जो सुधार किए जा रहे हैं, उसका लाभ भी बिहार को मिलना तय है। प्रतियोगी परीक्षाओं के स्वरूप में बदलाव को लेकर प्रधानमंत्री ने कहा, इस शहर के लोग भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए बड़े-बड़े शहर की तरफ रुख करते हैं, इसमें उनका धन और ऊर्जा सभी खर्च होते हैं, अब सरकार की ओर से काॅमन इंट्रेंस टेस्ट की पहल यह समस्या सुलझाएगी। आज के बिहार को लालटेन की जरूरत नहीं है, अब बिजली की खपत बढ़ने लगी है। जम्मू-कश्मीर में धारा-370, 35ए को दुबारा लागू करने की बात करने वालों को भी मोदी ने जमकर निशाने पर लिया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ जारी गतिरोध पर प्रधानमंत्री को घेरा।
सवाल किया कि हिन्दुस्तान की जमीन से चीन को कब भगाया जाएगा? हाल में बनाये गए कृषि संबंधी तीन कानूनों, जीएसटी, लाॅकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के पलायन और नोटबंदी सहित कई मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। दूसरी ओर देखा जा रहा है कि नीतीश कुमार की सभाओं में लालू प्रसाद यादव जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं! जिससे यह कई दफा बौख़लाय से दिखाई दिए! शराब बंदी भी नीतीश के खिलाफ जा रही है। लोगों का मानना है कि इससे अवैध शराब की बिक्री बढ़ी है और यह अब आॅर्डर पर घरों तक पहंुचाई जा रही है, जिससे बेरोजगार युवा मजबूरन शराब तस्कर बन रहे हैं और राजस्व की भारी हानि हुई सो अलग। अगर इन्होंने (नीतीश) अपने समय में विकास किया है, जनता की सुनी है, न्यायप्रिय रहे हैं तो फिर अपनी जीत के लिए सुनिश्चित क्यों नहीं हैं?