गुरुग्राम। कोविड संबंधित सावधानियां, लॉकडाउन का माहौल और इसी बीच किसी बच्चे के जन्मजात हृदय रोग का इलाज जिसकी प्रक्रिया जटिल हो जाए, यह पूरी स्थिति बच्चे और माता पिता के लिए किसी धैर्य की परीक्षा से कम नहीं रही होगी। 16 वर्षीया मोनिका ने इन सब का सामना किया, जिसे टेट्रोलॉजी ऑफ फैलट विद वैरी स्माल पल्मोनरी आर्टरीज नामक जन्मजात हृदय रोग था। इस रोग के तहत हृदय में छेद होता है और दाईं तरफ से हृदय से फेफड़ों तक रक्त जाने का रास्ता सिकुड़ा हुआ होता है। इसके परिणामस्वरूप रक्त की फेफड़ों तक पहुंच सीमित हो जाती है और रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा का स्तर भी बहुत कम हो जाता है। मोनिका के माता पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वह सही समय पर सर्जरी से महरूम रही और इस गंभीर रोग के कारण उसकी बहुत सी शारीरिक गतिविधियां भी सीमित रहीं। इसके अलावा मोनिका का बॉम्बे ब्लड ग्रुप भी बेहद रेयर ब्लड ग्रुप्स की श्रेणी में आता है जो तकरीबन दस हजार लोगों में से किसी एक में मिलने की सम्भावना होती है, और कोविड महामारी और संबंधित पाबंदियों के चलते इस ब्लड ग्रुप का इंतजाम मुश्किल था।
जब कोई उम्मीद नहीं दिखाई पड़ी तो डॉक्टरों ने मरीज के ब्लड यूनिट्स को ही स्टोर करने का निर्णय लिया, जिसके तहत 8 से 10 दिनों के अंतराल में मोनिका के तय ब्लड यूनिट्स निकाले जाते थे, जिन्हें सर्जरी के लिए सुरक्षित किया जाता था। उसपर से भी मोनिका की सर्जरी की सही उम्र निकल चुकी थी जो की 5 वर्ष की आयु होती है, इसलिए पूरी प्रकिया जटिल होने के साथ साथ जोखिम भरी भी थी, जिसे एक अनुभवी दिशानिर्देशन की जरूरत थी। इस सर्जरी को अनुभवी डॉक्टर रचित सक्सेना, सीनियर कसल्टेंट, सीटीवीएस, नारायणा अस्पताल, गुरुग्राम ने किया। मोनिका अब पूरी तरह से ठीक है और वापस अपनी सामान्य जिन्दगी में लौट आई है।
नारायणा अस्पताल के डॉक्टर रचित सक्सेना, सीनियर कसल्टेंट, सीटीवीएस, कहा कि मरीज की हालत बिगड़ती जा रही थी इसलिए इलाज के लिए कोविड संबंधित पाबंदियों के हटने तक का इंतजार करना उचित नहीं था। मोनिका को अपने दैनिक कामों में भी तकलीफ का सामना करना पड़ रहा था, सांस लेने में लगातार तकलीफ के कारण वह ठीक से सो भी नहीं पा रही थी। हमने कई रक्त दाताओं से संपर्क किया मगर लॉकडाउन के कारण आवागमन संभव नहीं हो पाया। इसलिए हमने सर्जरी के लिए सख्त चिकित्सकीय देख रेख के अंतर्गत मरीज का रक्त अपने ब्लड बैंक में सुरक्षित करना शुरू कर दिया। इस ब्लड ग्रुप की खासियत है कि इसमें होमोग्लोबिन तकरीबन 20 ग्राम रहता है जो आम तौर पर बच्चियों में 12 से 14 ग्राम के आस पास होता है। हालंकि यह बीमारी के अनुसार एक विकृति है लेकिन प्रक्रिया के अनुसार यह एक तरह से सकारात्मक रहा क्योंकि हमको मरीज के होमोग्लोबिन का स्तर गिर जाने की चिंता नहीं करनी पड़ी।
सर्कुलेशन से रक्त निकालने की यह पूरी प्रक्रिया निश्चित रूप से जोखिम भरी थी क्योंकि हृदय में विकार के चलते उसके रक्त में ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम था इसलिए हमें इस बात को भी सुनिश्चित करना था कि अब उसके रक्त से ऑक्सीजन का स्तर भी कम न हो। ऐसी गंभीर सर्जरी के लिए हमें कम से कम 4 यूनिट्स की आवश्यकता थी, और पहले से एक हृदय रोगी होने के कारण उसका वजन 50 किलोग्राम से कम था जिससे इस प्रक्रिया का विपरीत असर होने का भी जोखिम था। साथ ही रक्त को सुरक्षित रखने की अधिकतम अवधि 35 दिनों की होती है, जिसका मतलब यह था कि हमको सर्जरी होने से पहले एक महीने के अंदर अंदर जरूरत के अनुसार रक्त सुरक्षित कर लेना था। हमने सभी संबंधित जोखिमों से मरीज के माता पिता को अवगत करवाया और उनकी सहमति के साथ प्रक्रिया को शुरू कर दिया। डॉक्टरों ने इस प्रक्रिया को शुरू करने के 2 हफ्ते पहले से मरीज को आयरन और फोलिक एसिड के सप्ल्लिमेंट्स भी देने शुरू कर दिए थे। सभी डोनेशन कार्डियक मोनिटरिंग के साथ साथ किये गए।
डॉक्टर रचित आगे बताते हैं, एक बार इस रक्त को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया का समाधान हो गया उसके बाद हमने सर्जरी की तैयारी की। यहाँ सबसे पहली प्राथमिकता फेफड़ों की ओर रक्त लेजाने वाली असामान्य वाहिकाओं को ठीक करने की थी जिसे हमारे इंटरवेंशन पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर के द्वारा किया गया। उसके अगले दिन उसे सर्जरी के लिए ले जाया गया जिसके तहत उसके हृदय के छेद को बंद किया गया, और दाईं तरफ से हृदय से फेफड़ों की ओर अवरोध उत्पन्न करने वाली मांसपेशियों को निकला गया। रक्त के संचालन का रास्ता और पल्मोनरी वाल्व का पुनर्निर्माण किया गया। मोनिका पूरी तरह से ठीक हो गई और अस्पताल से डिस्चार्ज के के बाद अब अपनी सामान्य जिंदगी में लौट आई है, अपने भाई बहनों के साथ खेल रही है और सामान्य जीवन में लौट आई है। मैं अपनी पूरी टीम और मेडिकल स्टाफ को इस सफल सर्जरी और सहयोग के लिए दिल से धन्यवाद देता हूं।
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जनजात हृदय रोग की यदि बात करें तो इलाज के तरीकों में समय के साथ बहुत आधुनिकताएँ आयीं हैं और प्रक्रिया भी पहले के मुकाबले थोड़ी आसान हुयीं हैं, लेकिन फिर भी इसे जल्दी डायग्नोज किया जाना और जल्द से जल्द इलाज शुरू कर देने में भी बेहतर समाधान निहित हैं। किसी भी स्थिति में देर नही की जानी चाहिए, क्योंकि फिर बच्चे की उम्र बढ़ने के साथ साथ इसमें और भी जटिलताएं आने लगतीं हैं, जिससे मरीज की स्थिति गंभीर होती जाती है। नारायणा अस्पताल, गुरुग्राम के अनुभवी डॉक्टर्स और पूरी टीम अपने मरीजों को सर्वश्रेष्ठ व आधुनिक इलाज देने के लिए तैयार हैं।