नई दिल्ली। इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स में बच्चों का सफल बीएमटी का निदान किया गया। जिसके बाद बच्ची का इलाज किया गया, कई बार उसे खून चढ़ाया गया और दवाएं दी गईं। दुर्भाग्य से इस बच्ची के बाद जब उसके भाई का जन्म हुआ, तो कुछ ही सप्ताह बाद पता चला कि वह भी थैलेसीमिया से पीड़ित है। पश्चिम बंगाल के रहने वाले सुस्वती और अरीजित के माता-पिता इसे लेकर बेहद निराश हो गए, बच्चों की बीमारी के चलते उन पर मानसिक और आर्थिक दबाव बढ़ गया, क्योंकि दोनों बच्चों का इलाज चल रहा था। दोनों बच्चों को नियमित रूप से खून चढ़ाना पड़ता था, इसके अलावा हर बार खून चढ़ाने के बाद इकट्ठा हो गए अतिरिक्त आयरन को निकालने के लिए नियमित दवाएं भी देनी पड़ती थीं।
माता-पिता बच्चों को अपोलो लेकर आए, जहां दोनों बच्चों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लान्ट की सलाह दी गई। किस्मत से अपोलो के डॉक्टरों को दोनों बच्चों के लिए मल्टीपल एचएलए आईडेंटिकल (10,10) एंटीजन मैच्ड डोनर मिल गया। लेकिन इसके बाद पैसे का इंतजाम करना परिवार के लिए बेहद मुश्किल थी। अपोलो टीम ने फंडरेजिंग, ईएसआई और को-ऑपरेटिव संगठनों के जरिए पैसा इकट्ठा करने में उनकी मदद की।
डॉ गौरव खारया, क्लिनिकल लीड, सेंटर फॉर बोन मैरो ट्रांसप्लान्ट एण्ड सैल्यूलर थेरेपी एवं सीनियर कन्सलटेन्ट, पीडिएट्रिक हेमेटोलोजी, ओंकोलोजी एण्ड इम्यूनोलोजी ने कहा, जब सुस्वती और अरिजीत को अपोलो लाया गया। दोनों बच्चे सपोर्टिव केयर पर थे, उन्हें नियमित रूप से खून चढ़ाना पड़ता था, जिसके चलते परिवार पर भावनात्मक और आर्थिक दबाव हो गया था। उचित परामर्श के बाद हमने बच्चों का बोन मैरो ट्रांसप्लान्ट करने की सलाह दी। बच्चों के इलाज और उनके माता-पिता को परेशानी से बचाने का यही एकमात्र तरीका था। हमनें विभिन्न संगठनों के सहयोग से पैसा इकट्ठा करने में माता-पिता की मदद की। जिसके बाद सुस्वती का बीएमटी किया गया। प्रक्रिया मुश्किल थी, लेकिन बच्ची ने बहादुरी के साथ इस जंग को जीत लिया। ट्रांसप्लान्ट के पांच महीने बाद बच्ची अब ठीक है। इसके बाद उसके भाई का भी सफल बीएमटी किया गया और 17 दिनों के बाद अब वह भी ठीक हो रहा है। आमतौर पर बोन मैरो ट्रारंसप्लान्ट में भाई या बहन ही डोनर होते हैं, लेकिन इस मामले में दोनों ही बच्चे बीमारी से पीड़ित थे इसलिए हमें बाहरी डोनर की जरूरत थी और हमें क्।ज्त्प् से एक गैर-संबंधी स्वैच्छिक डोनर मिल गया। अगर ऐसा न हो सके, तो परिवार में से 50 फीसदी जेनेटिक आइडेंटिकल डोनर पर विचार किया जाता है। थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त का विकार है, जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन सामान्य से कम होता है। यह डीएनए में म्युटेशन की वजह से होता है, जिसका असर शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने वाले हीमोग्लोबिन से युक्त कोशिकाओं पर पड़ता है। थैलेसीमिया का म्युटेशन एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में जाता है। यहां दोनों बच्चे थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित थे, जो गंभीर स्थिति है, इसमें मरीज को नियमित रूप से खून चढ़ाना पड़ता है। थैलेसीमिया का निदान एचबी इलेक्ट्रोफोरेसिस या एचपीएलसी के द्वारा किया जा सकता है। यह जांच खून चढ़ाने से पहले की जाती है। जिसके बाद यथासंभव एक आनुवंशिक जांच भी की जाती है।