स्व. डूंगरमलजी सुराणा के 100वें जन्मोत्सव पर निःशुल्क जांच शिविर का आयोजन किया गया।

नई दिल्ली। गुलाबी बाग स्थित नजर कंवर सुराणा अस्तपताल में शनिवार को स्व. डूंगरमलजी सुराणा के 100वें जन्मोत्सव पर निःशुल्क जांच शिविर का आयोजन किया गया। इस मौके पर भारी तदात में जरूरतमंद व्यक्तियों ने फ्री ओपीडी का लाभ लिया। शिविर के दौरान मोतियाबिंद के ऑपरेशन , ब्लड शुगर और बीपी जांच बिल्कुल निःशुल्क किया गया।
इस असर पर स्व. डूंगरमलजी सुराणा को याद करते हुए कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया, जिसमें आम आदमी पार्टी के स्थानीय विधायक अखिलेश त्रिपाठी, नॉर्थ एमसीडी स्थायी समिति के अध्यक्ष जय प्रकाश जेपी, भाजपा जिला चांदनी चौक अध्यक्ष अरविन्द गर्ग, पूर्व निगम पार्षद सतबिर शर्मा, उद्योगपति रिखबचन्द जैन, सुरजमल सुराणा, संजय सुराणा व सुराणा परिवार उपस्थित रहे।

कौन थे सेठ श्री डूंगरमल सुराणा, एक नजर उनके जीवन परिचय पर
स्वर्गीय सेठ श्री डूंगरमल सुराणा का जन्म 24 अगस्त 1919 को राजस्थान के चूरू में हुआ था। इनके पिता स्वर्गीय सोहनलाल सुराणा चूरू के गणमान्य व्यक्तियों में से एक थे। वे नगर में सेठ के रूप में प्रसिद्ध थे। डूंगरमलजी को सामाजिक कार्य की प्रेरणा उनके पिता से मिली थी। इनके सामाजिक कार्यों से प्रेरित होकर वर्तमान दिल्ली सरकार ने प्रमुख सड़क का नाम इनके नाम पर रखा, जो स्वर्गीय डूंगरमल सुराणा मार्ग से जानी जाती हैं। कलकत्ता में पढ़ाई पूरा करने जे बाद स्वर्गीय श्री डूंगरमल 1941 में दिल्ली आए। एक विद्वान दार्शनिक व्यक्ति के रुप मे साहित्य, कला और कानून में मर्मज्ञ थे। किसी भी विषय पर गहराई से चिंतन व मनन करने की शैली अधिवक्ता जैसी थी। इसलिये कई प्रबुद्ध लोग कानूनी, पारिवारिक और सामाजिक विषयों पर सलाह लेने के लिये आया करते थे। हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, राजस्थानी, बंगाली, संस्कृत आदि भाषाओं के साथ-साथ साहित्य में इनकी बेहद रुचि थी। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं। वे उच्च विचारों के धनी, दृढ़ निश्चयी, अति संवेदनशील व करुणाशील व्यक्ति थे।
गुलाबी बाग में नजर कंवर सुराणा अस्पताल में गरीब व वंचित लोगों को श्रेष्ठ उपचार की सुविधा मिल रही है। वे सही अर्थों में जनसेवक थे। पूरा समाज ही उनका परिवार था, जो भी विकास की दौड़ में आर्थिक दृष्टि से पिछड़ जाता, उसे भरपूर सनेह देते, उसे रास्ता दिखाते, मार्गदर्शन व आश्रय देते। वे अपने आप में एक संस्था थे। ऐसे कालजयी व्यक्ति कभी दिवंगत नहीं होते और सदैव चिरंजीवी होते है भावी पीढ़ियों की स्मृति में मार्गदर्शक बनकर।

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