प्रमोद गोस्वामी,
लोकसभा के सातवें चरण का चुनाव 19 मई को सम्पन हो गया और इसी के साथ देश की निगाहें 23 मई पर टिकी हुई हैं। रिजल्ट आने में अब कुछ घंटे बाकी हैं, लेकिन न्यूज चैनल अपने-अपने तरीकों से रूझान के आंकड़े जनता के सामने पेश कर रहे हैं।
एग्जिट पोल की मानें तो एनडीए को 277 से 365 तक के आंकड़े पेश किए जा रहे। एग्जिट पोल के आंकड़े चाहे जो भी हो देश मे एनडीए की सरकार बनना तय है।
दिल्ली के सातों सीटों पर भाजपा के वापसी भी तय है
अगर बात करें देश की राजधानी दिल्ली के सीटों के बारे में, तो दिल्ली के सातों सीटों पर भाजपा के वापसी भी तय है और यह युवा सियासत का अपना आकलन हैं। दिल्ली में मुख्य तौर पर तीन पार्टियों भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने लोकसभा का चुनाव लड़ा। भाजपा की बात करें तो एक सकारात्मक राजनीति के तहत लोगों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर वोट दिया हैं। जनता ने झुठ-फरेब से उठकर आतंकवाद के खिलाफ वोट किया है।
दिल्ली की राजनीतिक में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नही हैं। लोकसभा चुनाव 2019, दिल्ली में कांग्रेस सीट तो नहीं निकाल पायेगी, लेकिन शीला दीक्षित की वापसी कांग्रेस पार्टी के लिए फायदेमंद जरूर हैं, निश्चित तौर पर 23 मई को कांग्रेस के वोट बैंक में बढ़ोत्तरी होगी और आने वाला दिल्ली विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिये अच्छे दिन साबित होंगे।
हमारा मानना है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नही मिल रहा है। 70 में 67 सीटें जितने वाली पार्टी के वोट बैंक में जबरदस्त सेंध लगा है और यही कारण है कि आप का वोट प्रतिशत कम हुआ है। 2015 विधानसभा चुनाव में आप पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ था, केजरीवाल ने तीन बार के मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जेल तक भेजने की बात भी कही थी।
आप पार्टी भ्रष्टाचार, कुशासन और कांग्रेस के खिलाफ आई थी, जिससे कांग्रेस की वोट बैंक में सेंध लगाकर अपनी तरफ किया था, जिसमें मुसलिम वोट बैंक का एक बड़ा तबका का समर्थन केजरीवाल को मिला था। शीला की वापसी से मुस्लिम वोट बैंक ने फिर से कांग्रेस का हाथ थाम लिया, जिससे केजरीवाल के वोट में जबरदस्त गिरावट आई है और इस बात को केजरीवाल ने भी माना है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने झाडू को घर से बाहर कर दिया है।
बता दें दिल्ली में जिस तरह से आप पार्टी और कांग्रेस गठबंधंन की बात चली थी अगर दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन हो गया होता तो भाजपा को तीन सीटों का नुकसान हो सकता था। केजरीवाल इस बात को अच्छी तरह समझ रहे थे। इसलिए वे आखिरी समय तक कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिये आतुर थे।
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