सदर विधानसभाः निगम चुनाव में मिली शर्मनाक हार का हर्जाना लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा?

प्रमोद गोस्वामी,
नई दिल्ली। कहा जाता है कि पार्टी की रीढ़ की हड्डी कार्यकर्ता होता है। सदर विधानसभा पर पिछले पंद्रह साल कांग्रेस के विधायक का दबदबा रहा, लेकिन विधानसभा में विकास नहीं हुआ, जिससे कांग्रेस के प्रति क्षेत्र की जनता का मोह भंग हो गया। 2015 विधानसभा चुनाव में क्षेत्र के लोगों ने ‘आम आदमी पार्टी’ पर भरोसा जताया और आप प्रत्याशी सोमदत्त को भारी बहुमत से जीत दिलाई। विधायक सोमदत्त को उस वक्त तकरीबन 67362 लोगों का साथ मिला, जिससे दिल्ली कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष अजय माकन जैसे कद्दावर नेता को हार का मुंह देखना पड़ा था।

विधायक सोमदत्त की जीत का श्रेय उन ‘आप’ कार्यकर्ताओं को जाता है जिन्होंने 2015 विधानसभा चुनाव की समय सदर विधानसभा में पार्टी कार्यकर्ताओं ने एक अच्छी और मजबूत टीम की तौर पर काम किया था, जिससे विधायक और पार्टी को इतनी बड़ी जीत हासिल हुई। लेकिन ऐसा क्या हुआ जो चुनाव के बाद विधायक की मजबुत टीम बिखर गई और कार्यकर्ता एक-एक कर विधायक का साथ छोड़ते गए। जिसका परिणाम पार्टी को दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भुगतना पड़ा। सदर बाजार, किशन गंज और आनंद पर्वत वार्ड में पार्टी को शर्मनाक हार मिली। शास्त्री नगर वार्ड में भाजपा की आपसी गुटबाजी के कारण ‘आप’ प्रत्याशी को मात्र तकरीबन 300 वोट से जीत हासिल हुई, या ये कहें कि पार्टी और विधायक की लाज बच गई।

महज दो महीनों बाद लोकसभा चुनाव है और ऐसे में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की सातों सीटें जितने की दावा कर रहे है। पार्टी के तमाम बड़े नेता डोर टू डोर जाकर लोगों से संपर्क कर रहे है। अब सवाल यह है कि सदर विधानसभा के जो ‘आप’ कार्यकर्ता विधायक का साथ छोड़ चुके है क्या वे लोकसभा चुनाव में विधायक का साथ देंगे? ‘आप’ पार्टी को निगम चुनाव में मिली शर्मनाक हार का हर्जाना लोकसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ेगा? क्योंकि पिछले चार वर्षो के कार्यकाल में विधायक, बिखरे हुए कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में असफल रहे है।

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