राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) के नेता उपेंद्र कुशवाहा के भाग्य से नीतीश कुमार भाजपा गठबंधन को तोड़कर प्रधानमंत्री बनने की अपनी आकांक्षा के शिकार होकर राजनीतिक इज्जत बचाने की गरज से लालू प्रसाद यादव की पार्टी से गठबंधन कर लिए थे।
हालांकि, नीतीश कुमार से ज्यादा लालू प्रसाद के की पार्टी को इसका ज्यादा लाभ मिला,वरना अगर नीतीश कुमार और भाजपा एक होती तो इस पार्टी को मिट्टी भी नसीब नहीं होने वाला था,लेकिन दुर्भाग्य से इसे राजनीतिक जीवनदान मिल गया।
इस कार्य में महागठबंधन के पीछे अवॉर्ड वापसी गिरोह और तुष्टिकरण के समर्थकों तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों का हाथ रहा है।
हम उपेंद्र कुशवाहा की बात कर रहे थे। नीतीश कुमार की अनुपस्थिति में उपेंद्र कुशवाहा को भाजपा ने 3सीटें दी और भाग्य देखिए कि मोदी लहर में तीनों पर ही विजय रहे। उस दिन से इन्हें लगने लगा कि हम मुख्यमंत्री के दावेदार हैं, जबकि हकीकत यह है कि अगर तीनों सीटों पर मजबूत उम्मीदवार मिल जाए और ये गठबंधन से हट जाएं तो खुद भी नहीं जीत पाएंगे। इन्हें स्थिति का बखूबी अंदाजा है और इसी कारण से ये खुद अपनी सीट बदलना चाहते हैं।
ऐसा ही हाल मौसम वैज्ञानिक पूर्व रेल मंत्री रामविलास पासवान का है। पासवान जी को नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार रहे पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास ने उस हाजीपुर से हरा दिया था जहाँ से कभी इन्होंने जीत का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। इनकी स्थिति भी अच्छी नहीं थी। ये चुनाव से पहले सभी दलों के साथ गठबंधन कर आ चुके हैं। भ्रष्टाचार में इनका कोई तोड़ नहीं मिलेगा।
मुस्लिम वोटों के लिए कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन के हमशक्ल को अपने साथ चुनावी सभाओं में लिए फिरते थे,लेकिन हर बार पार्टी बदलने की वजह से बिहार की जनता ने इनको सबक सीखाने की ठान ली थी और ये जमीन पर आ चुके थे, तभी नरेन्द्र मोदी को बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया और एक बार फिर से बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया। सात आवंटित सीटों पर मोदी लहर में छह पर पासवान की पार्टी को जीत मिली। पिता-पुत्र (जमुई से चिराग पासवान, सांसद)और छोटे भाई (रामचंद्र पासवान, समस्तीपुर)संसद का मुंह देख सके और एक भाई पशुपति कुमार पारस बिहार सरकार में मंत्री व विधानसभा में विधायक का नेता है। ये लोग जनता और दबे-कुचलों के लिए संघर्ष जो करते हैं।
एक बार इन सबकी आर्थिक स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करने की जरूरत है,ताकि नेतागीरी के धंधे में आने से पहले की आर्थिक सच्चाई और आज की जीवनशैली लोगों के सामने आ सके।
देश के आम नागरिक नेताओं को इज्जत दें इसके लिए जरूरी है कि नेता अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करने के साथ-साथ चुनाव सुधार पर बल दें।
नेताओं को सबसे पहले चुनाव सुधार पर बल देना चाहिए, ताकि सच्चे और ईमानदार लोग राजनीति को पेशा बना सकें।
आप सबको नहीं लगता कि इस देश में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए योग्यता का निर्धारण है, वहाँ नेताओं के लिए कोई योग्यता नहीं। आखिर क्यों राजनीति में आपराधिक प्रवृत्ति के लोग दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। ईमानदार लोग राजनीति में सफल क्यों नहीं हो पा रहे। देश का दुर्भाग्य है कि हत्यारा, बलात्कारी, पॉकिटमार, तस्कर ,बाहबली ही सभी दलों की जरूरत बन चुके हैं।
उम्मीद है कि नेता लोग जनता की भावनाओं कै समझेंगे। आज सोशल मीडिया का युग है और अब किसी भी मुद्दे को छुपाना किसी के बूते की बात नहीं। चाहे वह कितनी भी बड़ी हस्ती क्यों न हो।
-हरेश कुमार
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