घटना 1983 की है उसी दौर में एक दिन बिहार के अखबार “आज” में 11 मई, 1983 को मुख्यपृष्ठ पर बॉबी की मौत की खबर छपी ये खबर इसलिए हंगामाखेज थी, क्योंकि बॉबी सचिवालय की एक मामूली-सी टाइपिस्ट थी, लेकिन उसे “हुस्नपरी” कहा जाता था जिसकी एक अदा पर सचिवालय डोल जाता था, उसकी मौत आठ तारीख को ही हो चुकी थी और किसी ने तीन दिन खबर भी नहीं ली थी!
अखबार में छपी खबर के आधार पर पुलिस जांच करने निकली खबर के मुताबिक, कदमकुआं के जिस कब्रिस्तान में उसकी लाश दफन होने की बात लिखी थी, उसी से उसकी लाश भी निकल आई
क्षत-विक्षत हो चुके शव पेट में मौजूद विसरा की जांच हुई तो उसमें मिथलिन नाम का जहर भी मिल गया ये वही जहर होता है जो कई बार जहरीली शराब में मिला होता है और कइयों की मौत की वजह बनता है।
इस रिपोर्ट के बाद पुलिस ने जब जांच शुरू की तो एक-एक कर के बिहार की राजनीति के बड़े कांग्रेसी नेताओं के नाम बाहर आने लगे द्य ये वो दौर था जब “बॉबी” फिल्म प्रचलित हुई थी। इसी फिल्म की वजह से श्वेता निशा त्रिवेदी को बॉबी बुलाया जाता था।
बॉबी ने अपने पहले पति को छोड़ दिया था और दूसरे रिश्ते में दो बच्चों की मां थी। वो विधानसभा में बतौर टाइपिस्ट का काम कर रही थी, मगर वो बिहार विधानपरिषद की तत्कालीन चेयरपर्सन राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली हुई बेटी भी थी और स्ट्रैंड रोड के सरकारी बंगले में रहती थी।
उस दौर के कांग्रेसी दिग्गज थे राधानंदन झा जिनके सुपुत्र थे रघुवर झा। पुलिस की जांच के मुताबिक, वो सात तारीख की शाम में बॉबी से मिलने कुछ लेकर गए थे। बॉबी को आई.जी.आई.एम.एस. अस्पताल भी किसी विधायक की गाड़ी से ही पहुँचाया गया था। अस्पताल में ही आठ तारीख को सुबह चार बजे के आस पास उसकी मौत हो गई। तीन दिन तक इसकी खबर किसी को नहीं थी!
ग्यारह को अखबार में छपी रिपोर्ट के आधार पर श्वेता निशा त्रिवेदी का शव श्मशान के बदले, कब्रिस्तान से बरामद हुआ। पुलिस की जांच आगे बढ़ती रही, कांग्रेसियों के नाम आते रहे। जिन दो डॉक्टरों ने पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट दी वो भी अलग-अलग थी। एक के मुताबिक, मौत ब्रेन हेमरेज (रक्तस्राव) से हुई थी तो दूसरे के मुताबिक, ह्रदयगति रुकने से।
खैर, पुलिस ने श्वेता त्रिवेदी के स्ट्रैंड रोड वाले आवास के सुरक्षाकर्मियों के बयान और विसरा में मौजूद जहर के आधार पर चार्जशीट दाखिल करने की तैयार कर ली थी द्य कर्पूरी ठाकुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के पुलिस की जांच पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए।
कहते हैं उसी वक्त करीब सौ कांग्रेसी विधायक तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के पास पहुंचे और सरकार गिरा देने की धमकी दी। आखिरकार जांच सीबीआई. को सौंप दी गई। फिर वही हुआ जो सीबीआई जांच में होता है। श्वेता निशा त्रिवेदी उर्फ बॉबी की मौत आत्महत्या सिद्ध हुई। किसी नेता, किस मंत्री पर कोई आंच नहीं आई। सारा काम सुचारू रूप से चलता रहा।
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