67 सीटें लानेवाली आप अकेले दम पर लोकसभा का चुनाव लड़ने की कूबत नहीं रखती
कांग्रेस और शीला दीक्षित के 15सालों के शासन और कॉमनवेल्थ गेम में बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार और उसके विरोध में दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार मुक्त भारत कीअन्ना लहर पर सवार होकर दिल्ली विधानसभा में 70में से 67सीटें पाने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) अकेले दम पर लड़ने की कूबत नहीं रखती। पंजाब,गोवा विधानसभा, दिल्ली यूनिवर्सिटी और एमसीडी के चुनाव ने केजरीवाल और आप की हवा निकाल कर रख दी है
आजकल केजरीवाल उसी शीला दीक्षित और राहुल गांधी की शरण में हैं जिसके भ्रष्टाचार और तथाकथित कुशासन के खिलाफ इस पार्टी का गठन किया था।
दिल्ली के मतदाताओं को यह सब अच्छी तरह से याद है कि कैसे केजरीवाल ने दिल्ली के चैक-चैराहों से लेकर हर गली-नुक्कड़ को कांग्रेस और शीला दीक्षित सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ 370पेज का सबूत होने का दावा किया था। लेकिन सरकार बनाते ही सारे सबूत यमुना नदी में प्रवाहित कर दिए।
आज केजरीवाल का बयान है कि वो शीला दीक्षित की बहुत इज्जत करते हैं। ऐसे ही नहीं केजरीवाल को लोग यूटर्न कहते हैं। हर बात से मुकरना कोई इस व्यक्ति से सीखे। कांग्रेस को गालियां देकर यह राजनीति में आया और उसी कांग्रेस और शीला दीक्षित के चरणों में गिरकर पहली बार सरकार बनाई। प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के वशीभूत इसने जनलोकपाल न पास होने के नाम पर दिल्ली के लोगों को अधर में छोड़ दिया और भाजपा के पीएम पद के घोषित प्रत्याशी के खिलाफ बनारस से लोकसभा का चुनाव लड़ने चला गया। बनारस में यह तीसरे स्थान पर रहा। पंजाब से लोकसभा की 4सीटों पर आप को विजय मिली,जिसमें एक भगवंत मान भी हैं जो संसद में दारू पीकर सजा पा चुके हैं। संसद की सुरक्षा से खिलवाड़ करता इनका एक वीडियो भी वायरल हुआ था।
खैर, जब पूरे देश से थू-थू हो गई तो केजरीवाल ने एक बार फिर से दिल्लीवासियों से माफी मांगी कि अब हम दिल्ली छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। दिल्ली की जनता बिजली-पानी और शीला दीक्षित मंत्रिमंडल के भ्रष्टाचार से तंग थी। भाजपा के नेताओं को एक-दूसरे को नीचा दिखाने और धोती खींचने से ही फुर्सत नहीं मिली, कई ने तो हम नहीं तो तू भी नहीं की तर्ज फर एक-दूसरे को हराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा। दूसरा पूरे देश में भाजपा को मिले जनसमर्थन से भी कुछ लोग बौरा गए थे, नतीजा 70में से 3सीट पर आ गए।
केजरीवाल ने यूटर्न लेते हुए कुछ समय बाद फिर पंजाब और गोवा चुनाव में पार्टी को उतार दिया।
पूरी टीम एक मंत्री को छोड़कर सवा महीने पंजाब में रही। वोट के लिए केजरीवाल खालिस्तान समर्थक आतंकियों के घर न सिर्फ रुके, बल्कि हर वो हथकंडा अपनाया जिससे कि पंजाब की सत्ता में आ जाए। ये तो इतने आत्मविश्वास से भरे थे कि पत्नी को इस्तीफा दिला दिया, ताकि वक्त पड़ने पर नया इतिहास रचा जा सके,लेकिन पंजाब की जनता ने इनकी पार्टी को 20सीटों पर समेट दिया। गोवा में तो सभी कैंडिडेट की जमानत तक जब्त हो गई।
इसके बाद एमसीडी के चुनाव में भी मुंह की खानी पड़ी। ये हरियाणा में फिर से सुगबुगा रहे हैं। दिल्ली की जनता को क्या मिला। शीला दीक्षित के समय भले ही जो भ्रष्टाचार रहा हो काम तो जमीन पर दिखता था। यहाँ तो बस सबकुछ विज्ञापन में है।
स्कूल और अस्पतालों की समस्या सुधरने की बजाए बिगड़ी ही है। साहब को मोदी के खिलाफ देशभर ककी पार्टियों और क्षेत्रीय नेताओं को एकजुट करने की राजनीति से ही फुर्सत नहीं, तो दिल्ली के बारे में क्या सोचेंगे।
देश की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी मुख्य सचिव को मुख्यमंत्री द्वारा फोन से आधी रात बुलाकर विधायकों से पिटवाया गया हो।
ये राजनीति को सुधारने आए थे,लेकिन इन्होंने राजनीति को जितना गंदा किया है, शायद ही किसी और ने किया हो। प्रधानमंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति को अपशब्द कहना, उनके लिए अपशिष्ट भाषा का इस्तेमाल करना कोई केजरीवाल से सीखे। केजरीवाल ने यह सब अपने मुस्लिम समर्थकों के बीच छवि बनाने के लिए किया। जिनकी भाजपा और मोदी का नाम सुनते ही पैंट गीली हो जाती है। मुस्लिम तुष्टिकरण और छद्मधर्मनिरपेक्षता में इसने कांग्रेस और समाजवादी नामधारी व ममता बनर्जी को भी पीछे छोड़ दिया।
इसका परिणाम यह हुआ कि दिल्ली की सात लोकसभा सीट पर कैंडिडेट नहीं मिल रहे,जो अपनी जमानत बचा सकें। इसी कारण से कांग्रेस से तालमेल करने की अंदरुनी कवायद में पार्टी जुटी है। राहुल गांधी से मुलाकात इसी की अगली कड़ी है।
-हरेश कुमार
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