पूसा संस्थान द्वारा बनाए गए कैप्सूल का घोल बना कर खेतों में छिड़का जाता है, जिससे पराली का डंठल गल कर खाद बना जाता है, इससे उपज बढ़ेगी और खाद का कम उपयोग करना पड़ता है। सीएम अरविंद केजरीवाल ने पूसा कृषि संस्थान का दौरा कर आईएआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बाॅयो डीकंपोजर तकनीक को समझा।
यु.सि., नई दिल्ली। पूसा कृषि संस्थान में आईएआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बाॅयो डीकंपोजर तकनीक का मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने निरीक्षण किया सीएम केजरीवाल ने कहा कि यह तकनीक पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने में व्यावहारिक और काफी उपयोगी है। पूसा संस्थान द्वारा विकसित किए गए कैप्सूल का घोल बना कर खेतों में छिड़का जाता है, जिससे पराली का डंठल गल कर खाद बना जाता है। इससे उनकी उपज बढ़ेगी और खाद का कम उपयोग करना पड़ता है। सीएम ने कहा कि अगले एक-दो दिन में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से मुलाकात करके पड़ोसी राज्यों में इस तकनीक के कुशल और प्रभावी क्रियान्वयन पर चर्चा करूंगा। यह तकनीकी बहुत ही साधारण, इस्तेमाल योग्य और व्यवहारिक है, यह वैज्ञानिकों की कई वर्षों की कड़ी मेहनत और प्रयासों का परिणाम है।
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, पराली जालने की वजह से हर वर्ष प्रदूषण होता है, इससे किसान भी परेशान हैं। आईएआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा एक तकनीक तैयार की गई है-बाॅयो डीकंपोजर। आज इसका निरीक्षण किया। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे किसानों को पराली नहीं जलानी पड़ेगी, पराली से खाद बनेगी और उसकी उपज भी बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि दिसंबर के महीने में किसान अपने खेत में खड़ी धान की पराली जलाने के लिए विवश होता है, उस जलाई गई धान की पराली का सारा धुंआ उत्तर भारत के दिल्ली सहित कई राज्यों के उपर छा जाता है। सीएम केजरीवाल ने कहा कि पूसा इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर से हम लोगों ने बातचीत की। पूसा के डायरेक्टर ने एक नई किस्म की तकनीकी इजाद की है, जिसके जरिए ये कैप्सूल देते हैं। चार कैप्सूल एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होते हैं और उस कैप्सूल के जरिए एक किसान लगभग 25 लीटर घोल बना लेता है, उसमें गुड़, नमक और बेसन डालकर यह घोल बनाया जाता है और जब किसान उस घोल को अपने खेत में छिड़कता है, तो पराली का जो मोटा मजबूत डंठल होता है, वह डंठल करीब 20 दिन के अंदर मुलायम होकर गल जाता है। उसके बाद किसान अपने खेत में फसल की बुवाई कर सकता है। इस तकनीक के इस्तेमाल के बाद किसान को अपने खेत में पराली को जलाने की जरूरत नहीं पड़ती है।
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केजरीवाल ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि जब किसान अपने खेत में पराली जलाता है, तो उसकी वजह से खेत की मिट्टी खराब हो जाती है। मिट्टी के अंदर जो फसल के लिए उपयोगी बैक्ट्रिया और फंगस होते हैं, वो सब जलाने की वजह से मर जाते हैं। इसलिए खेत में पराली जलाने की वजह से किसान को नुकसान ही होता है। इसके जलाने से पर्यावरण प्रदूषित अलग से होता है। वहीं, इस नई तकनीक का किसान इस्तेमाल करते हैं, तो इससे मिट्टी की उत्पादन क्षमता बढ़ती है और वह खाद का काम करता है। इस वजह से किसान को अपने खेत में खाद का कम उपयोग करना पड़ता है।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कृषि वैज्ञानिक बता रहे हैं कि इस कैप्सूल की कीमत बहुत ही कम है। प्रति एकड़ कितनी लागत पड़ रही है, हमें ये इसकी लागत का पूरा प्रस्ताव बना कर देंगे। हालांकि ये बता रहे हैं कि इस कैप्सूल की कीमत प्रति एकड़ लगभग 150 से 250 रुपए आ रही है।