किसान बिल को लेकर पंजाब-हरियाणा-उत्तर प्रदेश-राजस्थान- तेलंगाना-मध्य प्रदेश में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। वहीं हरियाणा के जींद में भारतीय किसान यूनियन ने सड़क जाम की। जींद से पटियाला, जींद से दिल्ली और जींद से पानीपत मार्ग पर जाम लगा रहा… लोगों के लिए बाहर न निकलने की एडवाइजरी तक जारी की गई! सवाल सीधा है कि ‘जिनका फायदा है वह आंदोलन क्यों कर रहे हैं’? क्या इनका लाभ, इन्हें बताने में सरकार नाकाम रही है? क्या इन्हें भरोसे में नहीं लिया गया? किसान आंदोलन के माहौल के बीच सरकार ने कृषि बिल से जुड़ी कुछ जरूरी बातें जारी की हैं। कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक-2020: कानून का उद्देश्य किसानों को अपने उत्पाद अधिसूचित
कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) यानी कि तय मंडियों से बाहर बेचने की छूट देना है। इसका लक्ष्य किसानों को उनकी उपज के लिये प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार माध्यमों से लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराना है। इस कानून के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई उपकर या शुल्क नहीं लिया जायेगा। यह किसानों के लिये नए विकल्प उपलब्ध करवाएगा, उनकी उपज बेचने पर आने वाली लागत को कम करेगा, उन्हें बेहतर मूल्य दिलाने में मदद करेगा, इससे जहां ज्यादा उत्पादन हुआ है, उन क्षेत्रों के किसान कमी वाले दूसरे प्रदेशों में अपनी कृषि उपज बेचकर बेहतर दाम प्राप्त कर सकेंगे। मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक-2020: इस प्रस्तावित कानून के तहत किसानों को उनके होने वाले कृषि उत्पादों को पहले से तय दाम पर बेचने के लिये कृषि व्यवसायी फर्मों, प्रोसेसर, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबंध करने का अधिकार मिलेगा। इससे किसान का अपनी फसल को लेकर जिस जोखिम में रहता है, वह उसके, उस खरीदार की तरफ जाएगा। जिसके साथ उसने अनुबंध किया है।
उन्हें आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट तक पहुंच देने के अलावा, यह विपणन लागत को कम करके किसान की आय को बढ़ावा देता है। आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020: यह प्रस्तावित कानून आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, प्याज और आलू जैसी कृषि उपज को युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि व प्राकृतिक आपदा जैसी असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर सामान्य परिस्थितियों में हटाने का प्रस्ताव करता है तथा इस तरह की वस्तुओं पर लागू भंडार की सीमा भी समाप्त हो जायेगी। इसका उद्देश्य कृषि क्षेत्र में निजी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने के साथ-साथ मूल्य स्थिरता लाना है।
विरोध इस बात पर है कि इससे बड़ी कंपनियों को इन कृषि जिंसों के भंडारण की छूट मिल जायेगी। जिससे वह किसानों पर अपनी मर्जी थोप सकेंगे। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि किसानों के लिये फसलों के एमएसपी) की व्यवस्था जारी रहेगी। देश में हो रहे विरोध को ख़त्म करने के लिए क्या इसे गांरटी किया जा सकता है, मोदी सरकार की ओर से? कृषि मंत्री ने यह भी कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का इस विधेयक से कोई भी लेना-देना नहीं है। इस पर पहले भी खरीद हो रही थी और आने वाले समय में भी होगी, किसी को शंका करने की जरूरत नहीं है। यह बिल किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले हैं। किसानों को अपनी फसल किसी भी स्थान से, किसी अन्य स्थान पर मनचाही कीमत पर बेचने की स्वतंत्रता होगी। मैं, जानना चाहता हूं, क्या ऐसा करने पर पहले बंदिश थी? अगर नहीं तो इसमें नया क्या है?
गौरतलब है कि लोकसभा से पास होने के बाद कृषि से जुड़े दो विधेयक रविवार को राज्यसभा में शोर-शराबे के बीच ध्वनि मत से पारित हो गए! विधेयक पारित होने के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, ‘बड़े ही हर्ष का विषय है कि राज्यसभा में पारित होने के बाद कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार लाने में सक्षम दो विधेयकों, किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक और किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता विधेयक को संसद की मंजूरी मिल गई है’। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा कि ‘भारत के कृषि इतिहास में आज एक बड़ा दिन है। संसद में अहम विधेयकों के पारित होने पर मैं, अपने परिश्रमी अन्नदाताओं को बधाई देता हूं। यह न केवल कृषि क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन लाएगा, बल्कि इससे करोड़ों किसान सशक्त होंगे।
इन विधेयकों से अन्नदाताओं को बिचैलियों और तमाम बंधनों से आजादी मिली है, दशकों तक हमारे किसान भाई-बहन कई प्रकार के बंधनों में जकड़े हुए थे, इन्हें बिचैलियों का सामना करना पड़ता था। संसद में पारित विधेयकों से अन्नदाताओं को इन सबसे आजादी मिली है, इससे किसानों की आय दोगुनी करने के प्रयासों को बल मिलेगा और उनकी समृद्धि सुनिश्चित होगी… सदन की कार्रवाई के दौरान भारी नारेबाजी भी होती रही। कांग्रेस ने तो इसे किसानों का डेथ वारंट तक करार दिया है। शिरोमणि अकाली दल ने कहा कि पंजाब के किसानों को कमजोर मत समझना। तृणमूल कांग्रेस के नेता और सांसद डेरेक ओ ब्रॉयन ने कहा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि विपक्ष जनता को गुमराह कर रहा है। आपने कहा था 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। लेकिन मौजूदा दरों पर 2028 के पहले किसानों की आय दोगुनी नहीं हो सकती, आपकी वायदों को निभाने की साख बहुत कमजोर है।
समाजवादी पार्टी से रामगोपाल यादव ने सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार विधेयकों को इतनी हड़बड़ी में पास करवाने पर क्यों तुली है? इन पर विमर्श या बातचीत करने के लिए सरकार तैयार क्यों नहीं हैं? इन्हें बनाने में किसी किसान संगठन से तक बात नहीं की गई! डीएमके सांसद, टी के एस एलांगोवान ने कहा, वह किसान जो जीडीपी में 20 फीसदी का योगदान देते हैं, उन्हें इन विधेयकों के जरिए गुलाम बना दिया जाएगा, यह विधेयक किसानों को मार देंगे और उन्हें एक वस्तु बना देंगे। लोकसभा में शिवसेना ने बीजेपी का साथ देते हुए विधेयक के पक्ष में वोटिंग की थी! पार्टी ने राज्यसभा में अलग ही रुख अपनाया सांसद संजय राऊत ने कहा, क्या सरकार इस बात का भरोसा दिलवा सकती है कि इन कृषि सुधार विधेयकों के पास होने के बाद किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी? कोई किसान आत्महत्या नहीं करेगा… ऐसा लगता है कि कोरोना संकट काल में मोदी सरकार की ओर से लाए गए अध्यादेश जोकि अब विधेयक बन चुके हैं और महामहिम के हस्ताक्षर के बाद कानून होंगे, आपदा में अवसर कैसे खोजा जाता है कि जीती जागती मिसाल है। लेकिन सरकार को विशालतम लोकहित में इस पर भी नज़र रखनी होगी कि कहीं बड़ी कंपनिया किसानों से सारी की सारी उपज खरीदकर जमाख़ोरी न कर ले और इसे बाद में जनता तक मनमाने दाम पर न बेचे। अगर ऐसा हुआ तो किसानों के साथ-साथ देश की जनता भी प्रभावित होगी, साथ ही प्रभावित होंगे फुटकर में माल बेचने वाले छोटे दुकानदार यानि कि रेहड़ी-पटरी-गलियों में फेरी करने वाले। अब किसान बिल पर शोर राजनैतिक था या सही मायने में किसानों की चिंता पर? यह तो भविष्य में किसान ही तय करेंगे।
-राजेश कुमार