बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में अपराधी और दबंग प्रवृत्ति के नेताओं के कारण आम नागरिकों का देश के नेताओं और राजनीति से मोहभंग होने लगा है। बिहार में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन आपराधिक और भ्रष्टाचारी नेताओं के कारण उद्योग-धंधों, शिक्षा, चिकित्सा और कृषि सभी को चैपट कर दिया। इस कारण से यहाँ के लोगों को अन्य राज्यों में मजदूर बनकर जीवनयापन करना पड़ रहा है।
नेपाल और बांग्लादेश से बिहार की लगती सीमाओं के कारण आपराधिक छवि के नेता मानव तस्करी से लेकर, हत्या, बलात्कार, अपहरण, विदेशी हथियारों, सोना, चांदी की तस्करी और अवैध व्यापार से लेकर कई तरह के अपराधों में लिप्त हैं। इन सभी को सत्तारूढ़ दल ही नहीं, विपक्ष के नेताओं के साथ-साथ स्थानीय पुलिस और प्रशासन का पूरा सहयोग मिलता रहा है। ईमानदार पुलिसकर्मी और अधिकारी इनके साथ रहते-रहते अपराध की दुनिया का रास्ता पकड़ लेते हैं। यह देश का दुर्भाग्य है कि कुछ समय पहले तक इन अपराधियों को कानून के शिकंजे में कसने के लिए जो पुलिसकर्मी दिनरात लगे रहते थे, नेता बनने के बाद ऐसे अपराधियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी इन पर आ जाती है।
इन अपराधियों को ड्यूटी के दौरान सैल्यूट करते समय ईमानदार पुलिसकर्मियों पर क्या बीतती होगी, ये वही बता सकते हैं। इन सबके साथ रहते-रहते कितने ही ईमानदार पुलिसकर्मी और अधिकारी अपराध की दुनिया से संबंध रखने लगते हैं। कई तो इन अपराधियों के लिए गोली-बारूद, जब्त हथियार, अवैध हथियार मुहैया कराने से लेकर अपराध के लिए रेकी करने, अपहरण,हत्या और हत्यारों के सबूतों को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बिहार का दुर्भाग्य यह है कि 1990 के दशक में मंडल और कमंडल आंदोलन के बाद यहाँ की राजनीति में आपराधिक और भ्रष्ट छवि के बाहुबलियों का तेजी से प्रादुर्भाव हुआ है।
सभी पार्टियों ने इन अपराधियों को अपने यहाँ जगह और टिकट दिया है। इस कारण से समाजसेवा के लिए अच्छे लोगों की कमी होने लगी है। आपराधिक और भ्रष्ट छवि के लोग नेतागीरी को अपने अवैध धंधों को सुरक्षा देने में इस्तेमाल करते हैं। सभी को पता है कि उनका जनप्रतिनिधि अपराधी और भ्रष्टाचारी है,लेकिन लोकतंत्र की कमियों के कारण वो कुछ नहीं कर सकते, ऐसे लोग कानून की कमियों का लाभ उठाकर पाकसाफ बच निकलते हैं। इस कारण से जो भी गवाह इन अपराधियों के खिलाफ खड़े होते हैं, उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ती है। अपने लोग भी साथ नहीं देते, व्यक्ति व्यवस्था से परेशान हो कर फ्रस्ट्रेशन का शिकार हो जाता है। कई बार वह बदले की भावनाओं से अपराध की दुनिया में उतर जाता है। एक अच्छा-भला इंसान भी इन अपराधियों के कारण अपराधी बन जाता है।
बिहार का दुर्भाग्य आपराधिक और भ्रष्टाचारी छवि के नेता ही नहीं, भौगोलिक संरचना के कारण होने वाली प्राकृतिक विपदा भी है। उत्तर बिहार में एक बड़ी जनसंख्या बाढ़ और उसके कारण जलजनित बीमारियों से परेशान रहती हैं तो दक्षिण बिहार में पानी की कमी के कारण सूखा से। नदियों को जोड़कर इस समस्याओं का स्थाई तौर पर निदान किया जा सकता है।
बिहार में शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली-पानी, पुल-पुलिया जैसी मूलभूत सुविधाओं में सुधार की काफी संभावनाएं हैं। कानून-व्यवस्था की स्थिति और आपराधिक व भ्रष्टाचारी नेताओं की दखलंदाजी के कारण सुधार भी कुछ खास नहीं हो पाता। जाति और धर्म की राजनीति ने आपराधिक और भ्रष्ट नेताओं को भले ही फायदा पहुंचाया हो, आम जनता बर्बादी की कगार पर पहुंच चुकी है। बगैर कमीशन दिए कोई कार्य नहीं होता, स्कूल, अस्पताल, सड़क, पुल-पुलिया बनते ही टूटने शुरू होता जाते हैं।
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नेताओं के लिए कोई योग्यता नहीं, वो हत्यारे, बलात्कारी या जघन्यतम अपराधी रहे हों, बस चुनाव जीतने की क्षमता रखते हों, इतना काफी है। अवैध धंधों से आए दो नंबर के पैसों के दम पर ऐसे लोगों ने नेतागीरी को भी धंधा बना लिया है। इन सभी ने योजनाबद्ध तरीकों से सरकारी स्कूलों, अस्पतालों को बर्बाद किया और कार्यालयों में बगैर रिश्वत कार्य न करने की संस्कृति पैदा की। आपराधिक और भ्रष्टाचारी नेताओं की जगह जब तक साफ-सुथरी छवि के युवाओं को जगह नहीं मिलेगी तब तक बिहार का नवनिर्माण मुश्किल ही नहीं असंभव है।
-हरेश कुमार, नई दिल्ली।
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