दिल्ली में 80 प्रतिशत बच्चे बाल देखरेख एवं सुरक्षा से वंचित

(यु.सि.) नई दिल्ली। दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग, मोबाइल क्रैशिज, नींव दिल्ली फोर्सेस एवं आईएसएसटी के सहयोग से बस्तियों में रहने वाले वंचित प्रवासी निर्माण मजदूर, कुड़ा चुनने वाले मजदूर, घरेलू कामकार, रेहड़ी पटरी, देह व्यापार आदि कार्यों मे लगे परिवारों में उनके छोटे बच्चों और संबंधित सेवाओं की वर्तमान स्थिति का अध्ययन की रिपोर्ट के आंकड़ों को घोष, मुख्य प्रबंधक, मोबाइल क्रैशिज एवं मोनिका, आईएसएसटी ने प्रेस क्लब में विमोचन किया किया।
यह अध्ययन दिल्ली के 9 जिलों से 441 परिवारों के साक्षात्कार एवं चर्चाओं के माध्यम से किया गया। यह रिपोर्ट में आंकड़े दर्शाते है कि छोटे बच्चों की देखरेख पर होने वाले खर्च का 52 प्रतिशत केवल स्वास्थ्य पर हो रहा है। दिल्ली जैसे शहर में आज भी 53 प्रतिशत बच्चे खुले में शौच के लिए जा रहे है। 39 प्रतिशत बच्चे आज भी आंगनवाड़ी सेवाओं से वंचित है। 80 प्रतिशत बच्चों को महिलाऐं छोड़कर काम पर जाती है इनकी देखरेख के लिए कोई व्यवस्था नही है।
प्रेसवर्ता में अलग-अलग समुदाय के लोगों की भी भागीदारी थी उन्होने अपने अनुभवों को संवादाताओं के समक्ष साझा किया। गीता देवी जो कि शाहबाद डेरी झुग्गी बस्ती से आई थी उन्होने बताया कि मैं कोठियों में काम करती हुँ जब मेरा बच्चा 3 माह का था तो मैं उसको ताले में बंद करके काम पर जाती थी पर अब वह 2 वर्ष का हो गया है मुझे डर लगता है की कही उसको चोट ना लग जाऐ। आंगनवाड़ी केन्द्र भी छोटे बच्चों को नहीं रखते है और वहाँ पर जगह भी नहीं है इस लिए मुझे काम छोड़ना पड़ा। मैं चाहती हुँ कि मेरे बच्चे के लिए पूरे दिन के लिए देखरेख की व्यवस्था हो ताकि मैं निश्चित हो कर काम पर जा सकूं।

मकसुदा बीबी जो कि जहाँगाीरपुरी पुनर्वास बस्ती से आई थी उन्होने साझा किया कि मैं कुड़ा चुनने का काम करती हुँ और जब मैं काम पर गई थी तो मेरा बच्चा नाले में गिर गया। उसको अस्पताल में भर्ती करवाया गया वहाँ पर डाक्टर की लपरवाही से उसकी मृत्यु हो गई। अगर मेरे बच्चे की देखरेख की सही व्यवस्था होती तो मेरा बच्चा मेरे पास होता। अब मुझे अपने दूसरे बच्चों को छोड़ कर काम पर जाने में डर लगता है
दिल्ली में सरकारी आंकड़े दर्शाते हे कि 27 प्रतिशत 6 वर्ष तक के बच्चे अपनी आयु से कम वजन के है। 17 बच्चे प्रतिदिन गुम हो जाते है देश के आंकड़े बताते है कि 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन शोषण के आंकड़े पिछले वर्ष से 21 प्रतिशत बढ़ा है।

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