-राजेश कुमार,
कोरोना टाइम में प्रवासी निर्माण मजदूर और कामगार देश के सभी राज्यों से अपनें घरों की ओर उस समय निकल पड़े, जब यातायात के सभी साधन राष्ट्रीय लाॅकडाउन के चलते अचानक बंद कर दिए गए! इनसे अपील की गई कि जहां हो, वहीं रहो। लेकिन यह ऐसे भयभीत हुए कि सैकड़ों किलोमीटर तपती सड़क पर भूखे-प्यासे पैदल ही अपने गांव-देहात की ओर कूच करने लगे। कोई मासूम बच्चों, पत्नी को लेकर रेहड़ी रिक्शे पर जा रहा था, तो कोई साइकिलों पर। कोई ट्रकों-टेंपो में भर कर तो कोई बसों-आॅटो-टेक्टरों में। कई तो लेंटर व सड़क का मसाला बनाने वाले ट्रालों में छुपकर जाते हुए दिखाई दिए। जानलेवा वायरस की मौत का भय इनके दिल और दिमाग में इस कदर घर कर गया था, पूछने पर यह कहते हुए दिखाई दे रहे थे कि ‘अब अगर मरना ही है तो क्यों न अपनो के बीच जाकर मरें’। एक सुबह देशवासियों को रेल से गांव जाने की आस में पटरी पर 16 मजदूर और जिनकी आस में यह शहरों में आए थे, वह रोटियां बिख़री हुई दिखाई दीं। हादसे के बाद रूआंसे गले को संभालकर और भीगी आंखों को पोंछकर वीरेंद्र शांत आसमान की तरफ देखता है और फिर कहता है ‘जिन लोगों के साथ कुछ घंटे पहले बैठकर रोटी खाई थी, अब उनकी लाशें मेरे सामने हैं। कुछ तो मेरे बहुत करीबी दोस्त थे। अब, क्या कहूंगा इनके घरवालों से? कैसे सामना करूंगा उनका? मेरा फोन, बैग सब गायब हैं। पीठ में चोट है। यह जख़्म भर जाएगा, लेकिन दिल में जो नासूर पैदा हो गया है, वह तो लाईलाज ही रहेगा हमेशा’। इसी पलायन के समय कई सड़कों पर जाते हुए मौत के मुंह में चले गए। इन्हें घर पहंुचाने के नाम पर इनका खूब आर्थिक शोषण भी हुआ। कई गर्भवती महिलाओं ने कथित पलायन के दौरान ही बच्चों को जन्म दिया और फिर कुछ समय बाद उठकर भूखी-प्यासी अपने घरों की ओर बढ़ चलीं। कई महिलाएं पांव में छाले पड़े हैं फिर भी गोद में बच्चों को उठाकर अपने गांवों की ओर जाती हुई दिखाई दीं। लोग घरों में बैठे टीवी पर चल रहे समाचारों के माध्यम से यह सब देख रहे हैं, इनकी भी आंखे ऐसे दृश्य देख भीग जाती हैं। यह हम पत्रकारों से मौका मिलने पर पूछ रहे हैं कि ‘इन्हें अपने घरों तक जाने का मौका तो भारत सरकार को देना ही चाहिए था। जब 48 दिन से हम सब यह देख रहे हैं, सरकार क्यों तमाशबीन बनी हुई है? क्या कोई सरकार जबाव देगी देश की जनता को? शायद नहीं। मजदूरी से मजबूरी के यह सभी सजीव दृश्य एक राज्य से दूसरे राज्य को मिलाने वाले, राजमार्गों पर अपने निशान छोड़ चुके हैं। दोबारा भविष्य में ऐसा न हो के लिए केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को अपना हेल्थ सिस्टम सशक्त करके रखना होगा।
गौरतलब रहे कि देश में 25 मार्च से लाॅकडाउन लागू है। ऐसे में काफी लोग अलग-अलग शहरों में फंस गए हैं। बहुत से प्रवासी मजदूरों के सामने रोजी रोटी की दिक्कत आ रही है। लगातार सड़कों के रास्ते इनके पलायन को थमता न देख, केन्द्र सरकार ने इन्हें अपने गांव भेजने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन शुरू की हंै। हर दिन हजारों की संख्या में मजदूरों को उनके अपने राज्यों में भेजा जा रहा है। इसी दौरान चंडीगढ़ से भावुक कर देने वाली तस्वीर सामने आई। चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पर मजदूर ट्रेन में बैठने से पहले धरती को नमन कर रहे हैं। अपने परिवार के बीच जाने की कितनी बेचैनी है इनके मन में, क्या कोई इसका अंदाजा लगा सकता है? यह भावुक पल चंडीगढ़ से गोंडा के लिए जाने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन के हैं। चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन से रवाना हुई इस ट्रेन में 1188 प्रवासी मजदूरों ने सफर किया। यह सारे लोग लाॅकडाउन के चलते पिछले डेढ़ महीने से चंडीगढ़ में फंसे थे। प्रशासन इन्हें सेक्टर-43 से अंतरराज्यीय बस अड्डे लेकर आया, सभी को मेडिकल चेकअप के बाद बस में बैठाया गया और फिर इसके बाद चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन ले जाया गया। उत्तर प्रदेश में अब तक पिछले 4 दिनों में सवा 2 लाख प्रवासी कामगार और मजदूर 170 ट्रेनों से वापसी कर चुके हैं। यही नहीं एक लाख से ज्यादा लोग राज्य परिवहन निगम की बसों और अन्य साधनों से इस दौरान यूपी पहुंच चुके हैं। सीएम योगी ने सभी जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि अंतरराज्यीय और अंतरजनपदीय आवागमन में किसी भी प्रवासी कामगार या श्रमिक को असुविधा नहीं होनी चाहिए। सभी के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाए, उन्हें सरकारी साधन से गंतव्य तक पहुंचाया जाए। गिनती कम या ज्यादा हो सकती है, लेकिन अन्य कई राज्यों का भी, प्रवासी कामगारों और मजदूरों की वापसी से लगभग यही हाल है। दिल्ली से पहली स्पेशल ट्रेन शाम 4 बजे चलनी थी, लेकिन यात्री दिन के 12 बजे से लाइन में लगने लगे थे! जोकि इनकी घर वापसी की आतुरता को बयान करता है।
गौरतलब है कि इसी कोरोना काल के दौरान यह भी देखने को मिला कि सभी राज्य दावा कर रहे थे, ‘हमने मजदूरों के रहने, खाने का पूरा बंदोबस्त कर दिया है। किसी को कोई तकलीफ नहीं है, इन्हें नगद सहायता भी दी जा रही है’, फिर देशभर से यह पलायन क्यों हुआ? आखि़र राज्य सरकारें क्यांे नहीं इनके मन में विश्वास जगा सकीं कि यह उनके यहां सुरक्षित रहेंगे? या फिर इन्होंने ने ही अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए, इन्हें (निर्माण मजदूर-कामगार) जाने को मज़बूर किया। इनके नाम पर हजारों करोड़ की राहत राशि जो राज्य व केन्द्र सरकार ने जारी की थी, क्या वह घपले-घोटालों की भेंट चढ़ गई है? क्या यह कभी सामने आ सकेगा? कोविड-19 के खिलाफ जारी जंग के बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेस काॅन्फ्रेंस में कहा कि सड़कों पर मजदूरों को देखकर लगता है कि सिस्टम फेल हो गया है। मेरा निवेदन है कि प्रवासी मजदूर दिल्ली छोड़कर ना जाएं, अगर फंसे ही हैं और जाना चाहते हैं तो हम ट्रेन का इंतजाम कर रहे हैं बिहार, मध्य प्रदेश ट्रेनें गई हैं, थोड़ा इंतजार और करें, पैदल मत निकलें। लेकिन इन्हें मजदूरों का पलायन 54 दिन का लाॅकडाउन जब खत्म होने को आया है, तब ही क्यों दिखाई दे रहा? केजरीवाल ने कहा दिल्ली में बहुत सारे कंस्ट्रक्शन का काम करने वाले मजदूर हैं। पिछले महीने हमने मजदूरों के खाते में 5000 डाले थे। इस महीने फिर से 5000 उनके खातों में डाल रहे हैं। जब मजदूरों को इतनी बड़ी राहत मिल रही है, मुफ्त राशन मिल रहा है, खाना मिल रहा है, कोरोना के इलाज का पूरा इंतजाम है, तो जो दिल्ली छोड़कर अपने राज्यों के लिए पलायन कर रहे हैं, वह कौन से मजदूर-कामगार हैं? आंनद विहार बस अडड्े का वह सीन(जहां हजारों की संख्या में अपने घर जाने के लिए मजदूर और कामगार उमड़ आए थे) लोग अभी भूले नहीं हैं। पलायन के दर्द को न दिखाते हुए ख़बरे टीवी पर दिखाई गईं कि जो निर्माण मजदूर और कामगार अपने घरों की ओर जा रहे हैं, उनसे बड़ी संख्या में महामारी फैल सकती है। गरीब मजदूरों में कोरोना दिखाई दे रहा है इन्हें। जो विदेशों से इस बीमारी को लेकर आए, वह किसी को दिखाई नहीं दिए? आखि़र क्यों, क्योंकि वह अमीर थे इसलिए? आज भी जो विदेशों से आ रहे हैं उनमें भी कोरोना के मरीज मिल रहे हैं, परन्तु उनकी ख़बरें नहीं हैं। सही मायने में सिस्टम तो फेल हुआ है, लेकिन राहत जरूरतमंद को न मिलने का और यही वज़ह है बड़ी संख्या में निर्माण मजदूरों और कामगारों के पलायन की। केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें तो टेक्स बढाकर अपनी अर्थव्यवस्था संभाल लेंगी, लेकिन उनका क्या जिनकी अर्थव्यवस्था केवल और केवल कड़ी मेहनत करने पर टिकी हुई है? क्या लोकहित में सरकार को महामारी के बीच सावधानी से काम करने का संपूर्ण रास्ता नहीं खोलना चाहिए? वैसे भी अंतहीन लाॅकडाउन अपने आप में समस्या है, समाधान की ओर बढ़ना ही आम जनता का हित होगा।
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