आंसू हैं कि थम नहीं रहा.. इस भय के वातावरण से लोग कैसे निकले?

अस्पतालों के बाहर लोग भर्ती अपने परिवार के सदस्यों (कोविड मरीज) को देखने के लिए खड़े हैं। इनतक कोई सटीक सूचनाएं नहीं पहुंचाई जा रही हैं। जिनका इलाज चल रहा है, उन्हें कोई देखने वाला नहीं है। अस्पतालों में लाशों का अंबार लगा है। अंतिम संस्कार के समय भी लोग अपने प्रियजन को देखने को तरस रहे हैं-बिलख रहे हैं-रो रहे हैं-आंसू हैं कि थम नहीं रहे हैं। लाशों के साथ बदसलुकी हो रही है, एंबूलेंस से लाशं श्मशान घाट तक एक के ऊपर एक रखकर कई-कई ले जाइ जा रही हैं। श्मशान घाटों पर चहुं ओर चिताएं जल रही हैं, कब्रिस्तान में दफन हो रही हैं। देश में मातम सा छाया हुआ है। जो ज़िंदा हैं, उन्हें भी लग रहा है कि ‘अगर हमें कोरोना हो गया तो शायद हमारे साथ भी ऐसा ही होगा’! लेकिन देश और राज्यों में सत्तारूढ़ राजनैतिक दलों की ओर से मौजूद मेडिकल सुविधाएं, जो इस महामारी से निपटने के लिए की गई थीं नाकाफी हैं। देशवासी जानना चाहते हैं कि आखि़र पिछले चार महींनो के दौरान इन सरकारों ने क्या किया? कोरोना की चपेट में आने के बाद सरकारी अस्पतालों में इलाज तो अब दूर की बात हो गई है, क्या मौत के बाद इस देश में अंतिम संस्कार भी ‘‘हमें ठीक से प्राप्त नहीं हो सकता है? जीते जी वोट तो हम भी देते रहे हैं। क्या मौत के बाद हमें घसीट- घसीटकर ले जाया जाएगा’’? लोगों का यहां तक कहना है कि ‘राजनीतिक दलों के लिए हम एक वोट हो सकते हैं, ज्यादा से ज्यादा कुछ वोट कम हो जाएंगे इनके। लेकिन अपने परिवार की हम जरूरत हैं, जिसके बिना उनका जीना मुहाल हो जाएगा’। क्या यह सब अमानवीय नहीं है? सरकारी कर्मचारी अगर कोविड-19 से मरने वालों का ठीक से अंतिम संस्कार नहीं करवा सकते हैं तो उसके परिजनों को शव सौंप दें। इस घातक वायरस से मरने वालों के परिवार वाले कम-से-कम अपनों को आखि़री विदाई तो सम्मानपूर्वक दे सकंगे।
गौरतलब रहे कि कोरोना मरीजों के इलाज और अस्पतालों में शवों के रखरखाव को लेकर सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली सरकार को जमकर फटकार लगाई है। अदालत ने अस्पतालों में शवों के बीच रहने को मजबूर कोविड रोगियों का जिक्र करते हुए दिल्ली के हालात को ‘भयावह’ बताया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अस्पताल शवों को रखने में उचित ध्यान नहीं रख रहे, लोगों की मौत के बारे में उनके परिवार वालों को भी सूचित नहीं कर रहे। सुनवाई के दौरान जस्टिस शाह ने कहा कि वार्ड में शव कूड़े में पड़े हुए मिले। मीडिया ने इस बदतर हालात को उजागर किया है। इंसान, जानवरों से भी ज्यादा बदतर हालात में हैं। सर्वोच्च अदालत ने कोरोना रोगियों की सही तरीके से देखरेख नहीं करने से जुड़े स्वतः संज्ञान वाले एक मामले में दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु से जवाब मांगा। मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि कोरोना मरीज की मौत के बाद उनके परिजनों को इस बारे में सूचना देने की भी जहमत नहीं उठाई जा रही है। कई ऐसे मामले दिखाई दिए हैं, जिनमें परिजन अपनों की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार तक में शामिल नहीं हो पाए हैं। सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली सरकार से इस मामले में जवाब दाखिल करने को कहा है और एलएनजेपी अस्पताल की स्थिति को गंभीरता से लिया है, उस पर भी जवाब दाखिल करने को कहा गया है। अदालत ने केंद्र सरकार को भी कोविड रोगियों और संक्रमित लोगों के शवों के प्रबंधन के लिए उठाए गए कदमों पर 17 जून तक जवाब देने को कहा। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने एक टीवी चैनल की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि रोते मरीजों की सुनने वाला कोई नहीं था। कोरोना वायरस की वजह से मृत लोगों को शवों का दिल्ली में जिस तरह से प्रबंधन किया जा रहा है, उस पर भी सर्वोच्च अदालत ने कड़ी नाराजगी ज़ाहिर की है और दिल्ली सरकार को फटकार लगाई। यह भी कहा कि दिल्ली में कुछ दिक्कत है, क्योंकि  टेस्टिंग अब 7000 से कम होकर केवल 5000 तक पहुंच गई है। सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली सरकार से पूछा कि आपने टेस्टिंग क्यों घटा दी है? जबकि मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों ने टेस्टिंग बढ़ा दी है और आज 15000-17000 टेस्ट रोज कर रहे हैं। क्या सरकार बनावटी फिगर चाहती है? राज्य की ड्यूटी है कि वह टेस्टिंग को बढ़ाए। अदालत ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा कि अस्पतालों में हर जगह शव फैले हुए हैं और लोगों का उसी जगह पर इलाज भी किया जा रहा है, जोकि दहशत भरा माहौल है।
गौरतलब है कि देशवासियों को यह भी हमेशा याद रखना होगा कि सदी की सबसे बड़ी विपदा मौत बनकर जब उनके सामने आई तो, उनकी राज्य सरकार और केन्द्र सरकार ने उनका कितना साथ दिया। क्या आपके इलाज की इन्होंने समुचित व्यवस्था की? क्या यह उन्हें अपना सच्चा जननायक कह सकते हैं, जो जनता को काल के गाल में समाते हुए तमाशबीन बने अपने घरों में छुपकर देखते रहे? मुझे नहीं लगता है कि देशवासी कभी यह भूल सकेंगे कि उन्होंने कोरोना काल में क्या-क्या खोया है। हां, जिस किसी राजनीतिक दल और राजनेता ने इस मुश्किल घड़ी में जनता का साथ दिया है, जनता उसे कभी नहीं भूलेगी, उसे प्रचार करने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी, खुद को चुनाव में जिताने के लिए। भारत की सबसे बड़ी अदालत से लताड़ खाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और देश के गृहमंत्री अमित शाह की अगुवाई में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन, एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया, दिल्ली उप-राज्यपाल अनिल बैजल सहित गृह मंत्रालय के अन्य अधिकारियों की रविवार को बैठक हुई। कुछ अहम फैसले भी हुए हैं। लेकिन यह कितने व्यावहारिक होंगे यह तो लोगों को कोरोना से मिलने वाली राहत और बचाव से ही तय होगा। निम्न और मध्यम वर्ग इस समय आर्थिक रूप से कमजोर है, लाॅकडाउन के बाद बढ़ती महंगाई और गिरते रोजगार से इनकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में समय लगेगा, प्राइवेट अस्पतालों में महंगा इलाज इनके लिए करवाना, इस समय तो संभव नहीं है। इस दिशा में भी केन्द्र व राज्य सरकारों को सोचना होगा। कोरोना से पैदा हुई घोर निराशा, भय के वातावरण से लोग कैसे निकले, यह भी सरकारी फैसलों पर ही निर्भर करेगा। अक्सर कहा जाता है कि देश पहले है। लेकिन लचर मेडिकल सुविधाओं के अभाव में जब जनता ही जीवित नहीं रहेगी तो देश किससे होगा? और जनसेवा किसकी होगी? वोट किससे मांगेगे देश में मौजूदा राजनैतिक दल? जून माह में ये हालात बदत्तर थी हांलाकि केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद आज स्तिथि में सुधार आया है।
-राजेश कुमार,

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *