प्रमोद गोस्वामी, (युवा सियासत)
आधी रात को मंदिर में पायल खन-खनाने की आवाज आती है। मंदिर के प्रति सरकार एवं स्थानिये नेताओं का रूख निराशजनक है। मंदिर में सोने की मूर्तियां थी जिसे नेपाल के रास्ते आये लुटेरों ने भगवान की मूर्तियां लूट ले गये। रानी मंदिर सुरसंड से जनकपुर (राजा जनक की नगरी) तक सुरंग थी। पोखर, कुआ और चरौत महंत का भी मंदिर है।
रानी मंदिर का इतिहास
बिहार के सीतामढ़ी जिले का प्रखंड सुरसंड में स्थापित रानी मंदिर का इतिहास अद्भुत रहस्यमय और बहुत पुराना है। माना जाता है कि तकरिबन 300सौ वर्ष पहले रानी मंदिर का निर्माण रानी रघुवंसी धन्वंतरी कुंवर द्वारा किया गया है। मुगल शासनकाल के समय चौदह कोस का राजपाट का निर्माण राजा सुरसेन ने किया था, इसी में एक सीतामढ़ी जिले का प्रखंड सुरसंड शामिल है। रानी मंदिर का इतिहास अति प्राचीन हैं और यह सुरसंड शहर का गौरव भी माना जाता है। यह मंदिर सीतामढ़ी से सुरसंड के रास्ते नेपाल को जोड़ने वाली मार्ग पर स्थित है। माना जाता है कि मंदिर के उपर पाॅच गुम्बद बना हुआ था जो आज मात्र तीन गुम्बद ही स्थित है दो गुम्बद ढह गया। मंदिर के शीर्ष पर कलश स्थापित है, जो पित्तल से बना है जिस पर सोने की परत चढ़ी हुई है। मंदिर की निर्माण में दो से तीन सौ ग्राम तक की पतली ईंटें, पत्थर एवं मिट्टी का इस्तेमाल किया गया है।
मंदिर के प्रति सरकार एवं स्थानिये नेताओं का रूख निराशजनक है
मंदिर के गर्भगृह गुम्बद का शौन्द्रर्यकर्ण का कार्य स्थानिय पूर्व मुखिया शोभित राउत और गांव वालों की सहयोग से किया जा रहा है। गौरतलब है कि इतिहास की धरोहर रानी मंदिर के प्रति बिहार सरकार एवं स्थानिये राजनेताओं का रूख बेहद निराशजनक है। इस क्षेत्र से विधायक, सांसद आते जाते रहे लेकिन किसी ने रानी मंदिर की उत्थान के लिए कार्य नही किया। बिहार सरकार व स्थानिये नेताओं को चाहिए कि इतिहास की धरोहर रानी मंदिर को एक पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित करें ताकि रानी मंदिर का इतिहास देश को मालूम हो।
सोने की मूर्तियां थी, जिसे चोरों ने चोरी कर लिया
रहस्यमय से भरी पड़ी यह मंदिर इतिहास से अपनी उत्पत्ति को दर्शाता है। जब हमारा ‘युवा सियासत’ के द्वारा मंदिर स्थल पर खबर कि हकिकत का पड़ताल करने का प्रयास किया गया तो मंदिर कि कई वर्षो से पूजा करते आ रहे पुजारी किशुन दास के द्वारा मंदिर से जुड़ी कई अद्भुत रहस्यमय जानकारियां प्राप्त हुई। पुजारी के मुताबिक पिछले कई दशक से बंद पड़े मंदिर में महज दो साल से पूजा अर्चना किया जा रहा है। दो साल पहले मंदिर में राम-सीता, लक्षमण और हनुमान जी की मूर्ती तथा शिवलिंग स्थापित किया गया है। माना जाता है कि मंदिर बनने सेे तकरिबन 100 वर्ष तक पूजा अर्चना के लिए इसका उपयोग किया गया था बाद में बंद हो गया और समय के साथ मंदिर खंडहर में तब्दील हो गया। रानी रघुवंसी धन्वंतरी कुंवर और उनके परिवार के बारे में पूछे जाने पर पुजारी किशुन दास ने बताया कि कहा जाता है रानी धन्वंतरी कुंवर और उनका परिवार एक विनाशकारी भूकंप में समाप्त हो गए। स्थानिए लोगों की माने तो मंदिर में 40 साल पहले सोने की मूर्तियां थी जिसे नेपाल के रास्ते आये लुटेरों ने भगवान की मूर्तियां लूट ले गये। यह भी कहा जाता है कि रानी मंदिर सुरसंड से जनकपुर (राजा जनक की नगरी) तक सुरंग थी।
आधी रात को मंदिर में पायल खन-खनाने की आवाज आती है
आज भी मंदिर में आवाजें आती है.. मंदिर के पुजारी किशुन दास बताते है कि आधी रात को मंदिर में पायल खन-खनाने की आवाज आती है ऐसा प्रतित होता है कि मंदिर के प्रांगन में कोई महिला भ्रमण कर रही हो। ये भी कहा जाता है कि वर्षो से यहा पर अद्भुत विशाल नागों का बसेरा है आज भी यहां पर कभी कभी नाग देवता को देखा जा सकता है। गौर करने वाली बात यह है कि आजतक नाग देवता ने किसी को किसी प्रकार के नुकसान नही पहुंचाया है और स्थानीय लोगों ने भी कभी किसी नाग देवता को हानि नही किया। मंदिर के गुम्बद पर नाग देवता की आकृति आज भी देखी जा सकती है। रानी मंदिर के प्रांगन में एक विशाल कुआ है। कहा जाता है कि यह कुआ रानी मंदिर के समय का है और इस कुआ का रहस्य रानी मंदिर से जुड़ा हुआ है।
पोखर, कुआ और चरौत महंत का भी मंदिर है
रानी मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के ठिक सामने एक विशाल पोखर (तलाब) है। कहा जाता है कि इस पोखर का इतिहास भी बेहद पुराना है और इस पोखर का पानी कभी नही सूखता है। वही साथ में चरौत महंत का भी मंदिर है और यह मंदिर भी रानी मंदिर की तरह कई वर्षो पुराना है। इस मंदिर का भी इतिहास खंगाली जाए तो यह भी इतिहासिक धरोहर के तौर पर उभर कर सामने आयेगा।